‘क्षमा
वीरस्य भूषणम्’
का अर्थ यह नहीं है कि ‘क्षमा दुर्बलस्य दूषणम्’।
वीर आदमी के लिए क्षमा भूषण और निर्बल के लिए क्षमा दूषण है, ऐसा
मानने वाले अज्ञानी हैं। क्षमा तो एक आत्मिक गुण है। सबल हो या निर्बल, क्षमा
गुण जिनमें प्रकट हुआ हो,
उनके लिए तो यह गुण भूषणरूप ही होता है। ‘क्षमा
सबल का भूषण है और निर्बल का दूषण’, यह सतही सोच है, आत्म-परिणामी
सोच नहीं है। ‘दुर्बल को किसी ने गाली दी या मारा और वह सामने वाले को गाली न दे अथवा न मारे
तो उसको क्षमाशील कैसे कहा जा सकता है, क्योंकि वह तो और न पिटे
इसलिए चुप रहता है,
वह क्षमाशील कैसे हुआ?’ अज्ञानी होकर भी ज्ञानी होने
का ढोंग करने वाले बहुत से लोग, ऐसा प्रश्न खडा करके भद्रिक लोगों को
व्यथित कर रहे हैं। क्षमा का गाढ संबंध तो मन के साथ है। शरीर दुर्बल हो तो भी मन
मजबूत हो और आत्मा सुविवेकी हो तो दुर्बल शरीर वाला भी सुन्दर क्षमाशील हो सकता
है। शरीर भले ही दुर्बल हो,
किन्तु जो गाली देने की वृत्ति रहित हो, वह
सच्चा क्षमाशील है। कोई मारे तब भी ‘मारने वाले का बुरा हो’, इतना
भी विचार न आए और मारने वाले के प्रति करुणा का भाव रखे; वह
सुन्दर क्षमागुण को धारण करने वाला है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
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