आपने आपकी संतानों को जिस प्रकार पढाया है और पढा रहे हैं, उसको
देखते हुए यह नहीं माना जा सकता कि आप में सम्यग्दर्शन है। आपने उन्हें ऐसा शिक्षण
दिलाया है कि वे आपको पाठ पढावें, यहां तक तो ठीक, परन्तु
आपको ही उठालें तो कोई अचरज की बात नहीं। शिक्षण किसे कहा जाए? इसकी
समझ आज न तो मां-बाप को है और न शिक्षकों को। और ये सब शिक्षण देने निकले हैं। ऐसे
शिक्षण से तो आज पागलों की पैदावार बढ रही है। सुख में विराग और दुःख में समाधि, यह
भगवान अरिहंत देवों द्वारा जगत को दिया गया ऊॅंचे से ऊॅंचा शिक्षण है। ऐसे शिक्षण
में प्रायः संघ के अधिकांश लोगों की रुचि नहीं है, इसलिए बहुत विकृतियां
हो रही हैं। आप अपनी संतानों को स्वार्थ के लिए ही पढाते हैं। शिक्षण देकर भी आप
अपकार कर रहे हैं। ज्ञान का दान करके भी अज्ञानी बनाने का काम आपने शुरू किया है।
ये कमाकर लावें,
यही आप चाहते हैं, परन्तु असंतोष की आग में ये
जल मरें, इसकी आपको चिन्ता नहीं है। संतान को कमाने के लिए पढावे, वह
जैन नहीं। पेट के लिए विद्या पढाना पाप है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
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