शिक्षा संस्थानों में आज तो "सा विद्या या विमुक्तये" का बोर्ड लगाकर ठगने का धंधा किया जाता है, क्योंकि आज के शिक्षण में
मुक्ति की तो कोई बात होती ही नहीं है। "सा विद्या या विमुक्तये" का अर्थ तो यह कि जो विद्या मुक्ति का बोध दे, लेकिन आज के
स्कूल-कॉलेजों में मुक्ति के शिक्षण का स्थान तो स्वच्छंदता और विनाशक-विज्ञान ने
ले लिया है। सारी पीढी बिगड रही है, यह आप आँखों से देख रहे हैं, फिर
भी हम से पूछते हैं कि ‘शिक्षण में खराबी क्या है?’ जीवन का निर्माण बाल्यकाल से प्रारम्भ हो
जाता है। बच्चों को हृदय की पवित्रता का मूल्य उतना नहीं बताया जाता, जितना
दूसरी चीजों का बताया जाता है। आज शिक्षा में नैतिक अवमूल्यन की समस्या पर ध्यान
नहीं दिया जा रहा है। हृदय की पवित्रता केवल साधुओं के लिए ही महत्त्वपूर्ण नहीं
है, शासकों और परिवार के सदस्यों के लिए भी बहुत जरूरी है। साधारण व्यक्ति प्रवाह
के पीछे चलता है। ‘यथा राजा तथा प्रजा’
कहावत ही नहीं, यथार्थ है। जब एक व्यक्ति
उचित-अनुचित ढंग से सत्ता प्राप्त कर कथित बडा आदमी बन जाता है, तब
दूसरा आदमी भी सोचता है कि भ्रष्ट तरीके से पैसा कमाकर बडा आदमी बना जा सकता है।
सत्ता पर जब धर्म का अंकुश नहीं रहता, तो वह निरंकुश हो जाती है।
सत्ता राष्ट्र की हो या परिवार की, उस पर से जब-जब धर्म का अंकुश
हटता है, वह उन्मादी हो जाती है। प्रवाह को वही मोड सकता है, जो
असाधारण हो, जो सत्ता और अर्थ प्राप्ति के लिए भ्रष्ट उपायों का सहारा न ले।
शिक्षा-व्यवस्था
को बदलने की जरूरत
शिक्षक का वास्तविक कार्य तो यह है कि वह भाषा आदि सब सिखाने के साथ बालक को
समझदार बनाए और उसमें ऐसी क्षमता विकसित करे कि वह अपने आप संस्कारी बने।
माता-पिता ने यदि योग्य संस्कारों का सिंचन किया होता तो शिक्षक का आधा कार्य
पूर्ण हो गया होता। फिर शिक्षक को केवल माता-पिता द्वारा प्रदत्त संस्कारों को
विकसित करने की ही जिम्मेदारी रहती। भाषाज्ञान सिखाना यह वस्तुतः ज्ञान-दान नहीं, अपितु
ज्ञान के साधन का दान है। सद्गुण प्राप्ति का और अवगुण त्याग का शिक्षण, यही
शिक्षा का साध्य है। परन्तु, आज तो प्रायः जैसी माता-पिता की हालत है, वैसी
शिक्षक की भी हालत है। सच्चा शिक्षक मात्र किताबी ज्ञान तक ही सीमित नहीं होता।
सच्चा शिक्षक तो विद्यार्थी में सुसंस्कारों का सिंचन करता है। मात्र किताबी ज्ञान
तक सीमित रहने वाला और विद्यार्थियों के सुसंस्कारों का लक्ष्य नहीं रखने वाला
शिक्षक, शिक्षक नहीं,
अपितु एक विशिष्ट मजदूर मात्र है। हमारे सोच को और हमारी
बेकार हो चुकी समग्र शिक्षा-व्यवस्था को आज बदलने की जरूरत है। सब अपना कर्तव्य
पालन करें और आने वाले कल को सुसंस्कारी बनाएं।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
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