आज जैन समाज की कैसी दुर्दशा है? यह गंभीर चिन्तन एवं चिंता का
विषय है। जैन कुल में जन्में लोगों की सारी गतिविधियां, व्यवहार
और विचार जिनाज्ञा के विपरीत परिलक्षित होते हैं। पुत्र माता-पिता की आज्ञा नहीं
मानता, भाई-भाई को नहीं मानता,
भाई-बहिन के बीच खटास चलती है, देरानी-जेठानी
के झगडे जगजाहिर होते हैं,
चोरी, तस्करी, मिलावट, खोटे
धंधे, खान-पान सब में जैन समाज बदनाम। ऐसी स्थिति आने के कारण पर क्या कभी आपने
विचार किया है?
जैन कुल में जन्म लिए हुए स्त्री-पुरुषों की ऐसी हीन दशा
क्या कम दुःख का विषय है?
जैन कुल के संस्कार पूर्ण रूप से जिन्दे और जागृत हों तो
क्या ऐसी स्थिति कभी आ सकती है? श्री जिनेश्वर के उपासक, निर्ग्रन्थ
गुरुओं के सेवक और अनंत ज्ञानियों द्वारा उपदिष्ट धर्म के पालक जैन, संसार में भी
इसी प्रकार से जीवित रहने वाले होते हैं कि जिनकी जीवन की कथनी और करनी देखकर, अजैन
लोगों को भी ऐसा लगता है कि- जैन जैन ही हैं। इनके आचार और विचारों को कोई पहुंच
नहीं सकता, इनकी जोडी नहीं मिलती है। इसीलिए जो जैन ऐसे हों, उनको सच्चे जैन बनने की
तैयारी करनी चाहिए। जो समस्त जैन कुल, वास्तविक जैन कुल बनें, तो
जैनों का संसार बिना मालिक का कंगाल और संस्कारहीन नहीं ही रहे।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
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