विचार
करिए कि माता-पिता की आज्ञा-पालन करने में पत्नी को पूछा जाता है क्या? माता-पिता
पहले या पत्नी?
माता-पिता पत्नी को लाए अथवा पत्नी माता-पिता को लाई? सचमुच
में विचार और विवेकहीन युग में आज तो पत्नी की खातिर माता-पिता को भी भूल जाते
हैं। वस्तुतः यह लक्षण नीच आदमियों का है। श्री कल्पसूत्र में आता है कि तिर्यंचों
को भी मां-बाप की आवश्यकता जब तक गरज होती है, तब तक ही और मनुष्यों में भी ऐसे
अधम होते हैं कि पत्नी के मिलने पर मां-बाप को भूल जाते हैं, नहीं
तो माता-पिता की आज्ञा पालन करने में पत्नी की सहमति की आवश्यकता ही नहीं है।
शास्त्र कहता है कि पति उन्मार्ग पर जा रहे हों, तो पत्नी उन्हें रोकने
के लिए सबकुछ करे और पति सन्मार्ग पर जा रहा हो तो शक्ति हो तो उनके पीछे जाए, नहीं
तो तिलक करके घर आए। यह उच्च कुल की मर्यादा है। मर्यादा मानने वालों के लिए सब
कुछ है। मर्यादाहीन के लिए तो कोई नियम ही नहीं होता है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
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