सत्य की गवेषणा कब हो सकती है? क्या आपको आपकी दशा से प्रतीत
होता है कि ‘आप सत्य के अर्थी हैं’?
संसार के प्रति रोष और मोक्ष के प्रति गाढ राग रखे बिना
क्या पारमार्थिक सत्य प्राप्त हो सकता है? नहीं प्राप्त हो सकता है, क्योंकि
जो अर्थ एवं काम में अपना कल्याण मानते हैं और इसके लिए धर्म को भी ताक में रख
देते हैं, जो संसार की सुरक्षा और वृद्धि के लिए ही उत्सुक हैं, जो
अवकाश मिलने पर जैसे भी देव-गुरु मिल जाएं, उन गुरु की इच्छानुसार सेवा
करने से अधिक कुछ करने के लिए तत्पर नहीं हैं, वे सत्य की गवेषणा नहीं कर
सकते हैं। सत्य की गवेषणा करनी हो तो पुद्गल की ओर से दृष्टि हटनी चाहिए और
आत्म-कल्याण की ओर दृष्टि जमनी चाहिए। आत्म-कल्याण ही ध्येय होना चाहिए और उसके
लिए आप यदि मोक्षार्थी बन जाएं तो आपके लिए सत्य की गवेषणा अत्यंत सरल हो जाए।
आत्मा को डूबने से बचाए,
आत्मा के गुणों को विकसित करने की प्रेरणा दे, ऐसे
चारित्रवान सुगुरुओं की शरण प्राप्त कर आत्मा इस काल में भी मोक्षमार्ग की शक्ति
अनुसार आराधना कर सकती है। ऐसे सुगुरु कम ही सही, लेकिन आज भी हैं, बात
सिर्फ उन्हें पहचानने की और कुगुरुओं से बचने की है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
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