धर्म की बात में कर्म को आगे लाए, वह जैन नहीं। कर्म से तो
संघर्ष करना है। कर्म को ढाल बनाने वालों का तो कर्म ने सत्यानाश ही कर डाला है।
कर्म आज्ञा दे,
तब धर्म करने की बात करने वाले कायर लोग कभी धर्म का आचरण
नहीं कर सकते। समझदार वह है जो दुनिया की बातें कर्म पर छोडता है और धर्म की बात
में पुरुषार्थ को आगे करता है। इस जन्म में धर्म की बात में समझ (विवेक) प्राप्त
करना बडे से बडा धर्म है। कर्म संसार में भटकाने वाला है और धर्म संसार से तारने
वाला है।
समझ ऐसी चीज है कि यदि उसे निकाली न जाए तो वह सतत साथ में बनी रहती है।
व्यापार नुकसान में चल रहा हो तो व्यापारी के मन में सतत यह बात चलती रहती है कि
व्यापार नुकसान में चल रहा है। भले ही वह यह बात मुँह पर नहीं लाता और सदा की तरह
प्रवृत्ति करता रहता है,
परन्तु हृदय में तो सतत चिन्ता चालू रहती है। इसी तरह सुख
में या दुःख में धर्मी की समझ उसे सतत जागृत रखती है। धर्मी जीवन के हर व्यवहार
में धर्म को आगे रखता है और सारे व्यवहार इस विवेक के साथ करता है कि उसके धर्म पर
कहीं कोई आँच नहीं आए।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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