पेट भरने के लिए दीक्षा नहीं ली जाती। जो ऐसा बोलते हैं कि बेचारा दुःखी था, पेट
भरने का साधन नहीं था,
इसलिए दीक्षा ले ली, वे वास्तव में भयंकर पापात्मा
हैं। उन लोगों को अपना पेट भरने के लिए चाहे जैसे निर्दय काम करते हुए भी शर्म
नहीं आती है। चाहे जैसी गुलामी करने में भी उनको निर्बलता नहीं दिखाई देती। दूसरे
पेट भरने के लिए दीक्षा लेते हैं, ऐसा कहने वाले पापात्माओं को भागवती
दीक्षा पर या धर्म के ऊपर तनिक भी प्रेम नहीं होता है।
मांग कर लाना और मिले उससे पेट भरना। मिले तो खाना, न
मिले तो पूरी मन की प्रफुल्लता से तप करना और संयम पालना, यह
कोई सहज वस्तु नहीं है। इसलिए ऐसे यथेच्छ बोलने वाले, ऐसा
बोलते भले ही हों,
परन्तु वे समझते हैं कि ‘संयम पालना सहज नहीं
है’। नहीं तो बदमाशी करके पेट भरने वाले उन लोगों ने कभी का वेश पहनकर यह
कपटपूर्ण प्रयत्न किया ही होता।-सूरिरामचन्द्र
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