मंगलवार, 1 मार्च 2016

मानवता की कमी



अज्ञानी (भोले) व्यक्ति का अनुचित लाभ, आप तो नहीं उठाते हैं न? आपका जिसके साथ लेन-देन हो, वह यदि अज्ञानी हो तो आप क्या करेंगे, क्या सोचेंगे? अच्छा मौका मिला, ऐसा तो आपको नहीं लगता है न? जो अपने भरोसे रहे, उसे कैसे ठगा जाए? जिसने हम पर भरोसा किया, उसने हमें अच्छा व्यक्ति माना है न? अच्छे व्यक्ति के रूप में उसने हमें मान दिया है न? भले ही हम अच्छे न हों, फिर भी जिसने हमें अच्छा माना, उसके प्रति तो हमें बुरा नहीं बनना चाहिए न?

जैसे क्षत्रिय लडते तो थे, परन्तु लडने के लिए आए हुए के साथ लडते थे। बिना कारण लडाई नहीं करते थे और यदि सामने वाले के पास हथियार न हो, तो उसे स्वयं हथियार देने के बाद लडते थे। इसमें भी नीति का पालन करते थे। शस्त्र-रहित के सामने शस्त्र लेकर नहीं लडते थे। वैसे ही आप व्यापार तो करते हैं, परन्तु व्यापार में नीति का पालन करते हैं या नहीं? आप पर कोई विश्वास करे तो उसके विश्वास का अनुचित लाभ तो आप नहीं उठाते हैं न? विश्वास रखकर आपकी पेढी पर आने वाले के साथ आप खोटा माप-तौल तो नहीं करते हैं न? शुद्ध वस्तु लेने आए हुए को मिलावटी वस्तु तो नहीं देते हैं न? किसी की अमानत में खयानत तो नहीं करते हैं न?

आज हालात ऐसे हो गए हैं कि विश्वास रखने वाला सरलता से ठगा जाता है। यह तो मनुष्यता की भी नीलामी है। विश्वासी की गरदन मरोडे वह शूरवीर तो है ही नहीं, परन्तु मानव भी नहीं हो सकता। ऐसे लोग निश्चित ही मानव के वेश में दानव ही हैं। मानवता की जब सचमुच कमी हो जाती है, तब धर्म बहुत दुर्बल बन जाता है, यह कोई नई बात नहीं है। आज समाज की ऐसी ही दशा बनती जा रही है। ऐसी दशा में जो आनन्द मानते हैं, वे कदाचित् दानादि भी करते हों, तो भी वह दानादि वे लोग धर्म के लिए ही करते हैं, ऐसा कैसे माना जाए? विश्वासी की गर्दन मरोडने वाले मन्दिर-उपाश्रय में भी जाएं या धर्म का चोला पहिन लें तो भी उसका आध्यात्म की दृष्टि से कोई अर्थ नहीं, वह स्वयं (की आत्मा) को और अन्यों को धोखा देने का काम ही करते हैं, उन्हें किसी भी रीति से धार्मिक कहा ही नहीं जा सकता है, वे पाखण्डी ही हैं। ऐसे ही मिथ्यात्वी, मानवता के दुश्मनों की वजह से आज धर्म कमजोर हो रहा है। आपको भाग्य के योग से सामग्री तो बहुत अच्छी मिल गई है, परन्तु इस सामग्री को आप पहचान सके हैं या नहीं? और इस सामग्री से जो लाभ उठाया जा सकता है, वह उठाने की आपकी भावना है या नहीं? बहुत से तो अज्ञानी हैं और जो शिक्षित हैं, उनमें बहुत सारे संसार-सुख के रस में क्षुब्ध हैं। ऐसों को चाहे जितने अच्छे भगवान मिल जाएं, वे भगवान से किस बात की आशा करेंगे? वे भगवान से तुच्छ सांसारिक सुख ही मांगेंगे न?-सूरिरामचन्द्र

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Home Remedies for Dangerous Piles