आज आप लोगों के घरों में बुजुर्गों की स्थिति ऐसी हो गई है कि ‘जो
कमावे वह खावे और दूसरा मांगे तो मार खावे’। ऐसी स्थिति हो जाने के कारण
ही इस देश में वृद्धाश्रम या विधवाश्रम की बातें चलने लगी हैं। ऐसे आश्रम स्थापित
हों, यह कोई गौरव की बात नहीं है; अपितु उन बुजुर्गों और विधवाओं के
परिवारों के लिए तथा समाज और संस्कृति के लिए शर्म की बात है।
आपसे मेरा पहला प्रश्न यह है कि आपका राग आपके माता-पिता पर अधिक है या
पत्नी-बच्चों पर अधिक है?
भगवान पर राग होने का दावा करने वाले को मेरा यह
महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। योग की भूमिका में माता-पिता की पूजा लिखी है, पत्नी-बच्चों
की नहीं। मुझे तो ऐसा महसूस होता है कि आज के लोगों को कम से कम कीमत की कोई चीज
लगती हो तो वह उसके मां-बाप हैं।-सूरिरामचन्द्र
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें