पुत्र चार प्रकार के होते हैं- 1. अभिजात,
2. सुजात,
3. नीच और 4.
कुलांगार। अभिजात उसे कहते हैं, जो अपने पिता की साख को बढाए। पिता
की प्रतिष्ठा को रोशन करे और उसमें चार चांद लगाए। सुजात अपने पिता की प्रतिष्ठा
का उचित रूप से उपयोग करे। नीच वह है जो अपने बाप की प्रतिष्ठा को खराब करे और
कुलांगार वो जो पिता की प्रतिष्ठा को मटिया-मेट कर देता है। नीच पुत्र तो मात्र
पिता की प्रतिष्ठा में बट्टा लगाता है अर्थात् इतना ही करता है, जिससे उसके पिता की निन्दा हो।
परन्तु कुलांगार तो उससे भी भयंकर होता है,
पिता की समस्त प्रतिष्ठा को जला
देता है।
हमारे पिता तो भगवान महावीर हैं और हम उनकी सन्तान
कहलाते हैं। अभिजात भले न बन सकें, परन्तु सुजात तो बनना ही है न?
सुजात वही बन सकता है, जो आज्ञा का उलंघन करने वाली एक भी
प्रवृत्ति नहीं करे। सुजात सन्तान कदापि जमाने की हवा के अनुसार नहीं चलती, वह महावीर पिता की आज्ञा के अनुसार
चलती है। यदि वह आज्ञा की अनदेखी करके जमाने की हवा के अनुसार चलने लगे, तब समझ लो कि वह नीच की श्रेणी में
आ गई है और आज्ञा के विरुद्ध होकर जमाने के अनुसार गुण गाने लगे, तब वह चौथी कोटि में आती है। इसमें
आश्चर्य करने जैसी कोई बात नहीं है? सुजात बनने का आशय आज्ञा को मानना है, पालन करना है और अच्छी तरह से पालन
करने में समर्थ न हो, तब जो आज्ञा का पालन करते हैं,
उनकी हाथ जोडकर अनुमोदना करे तथा
दूसरों को आज्ञा का पालन करने के लिए प्रेरणा देवे।-सूरिरामचन्द्र
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