तम्बोली की कैंची चलती ही रहती है। पान खण्डित हुआ तो
कैंची चलाता ही है। सडा हुआ भाग निकालता है,
न निकाले तो सम्पूर्ण
करण्डिया-टोकरा (पान रखने का स्थान) बिगाड देता है। सडे हुए भाग को दूर करना, उसके प्रति उसका द्वेष नहीं है।
किन्तु सम्पूर्ण टोकरे को न बिगाडे, इसीलिए ही तम्बोली की कैंची चलती रहती है। पान खिलाने वाला
सामग्री कितनी रखता है? कत्था, चूना, जिनतान की गोली सब रखता है। पान की पेटी होती है, किन्तु कैंची पहले। तम्बोली को तो कैंची
के बिना चलता ही नहीं है।
शरीर का भी सड़ा हुआ अंग नहीं निकाला जाए तो पूरे शरीर
में जहर फ़ैल सकता है और व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है। इसी प्रकार शास्त्रकारों ने
कहा है कि श्रीसंघ को यदि स्वयं का बचाव करना हो तो निह्नवता, उन्मार्गगामिता आदि सडे भाग पर कैंची
चलानी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होगा तो आगम का और धर्म का कितना नाश होगा? एक सडा हुआ हजार को सडाता है। कारण
कि यह चेपी रोग है। शास्त्रों में श्रीसंघ को सावचेत रहने की भलामण पूरी दी है।
जितने अंश में इस भलामण का स्वीकार, उतने ही अंशों में कल्याण है।
सडा हुआ भाग दूर रखना,
इसमें कोई वैरभाव नहीं है। वहां
दुर्भावना नहीं है। किन्तु सडे हुए को साथ रखकर या उसके साथ रहकर सडने का या शक्ति
के होते हुए भी उसका दुर्लक्ष्य करने का अथवा उसको बढने देने का शास्त्र मनाई करते
हैं। दया का मतलब यह नहीं कि आत्मा का घात हो। किन्तु,
दोषों को निभाने की भावना भी नहीं
होनी चाहिए। यदि यह नियम नहीं रखेंगे तो अपना भी नाश होना सम्भव है।-सूरिरामचन्द्र
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