मन-वचन-काया को अयोग्य क्रियाओं से रोककर योग्य में जोडेंगे तभी ध्यान आएगा। ध्यान
पाने की योग्यता के लिए पहले तो संयम में स्थिरता चाहिए, अर्थात्
प्राणांत में भी संयम में अस्थिर नहीं होना चाहिए। प्राण की बलि देकर भी संयम को सम्हालने
की भावना वाला आत्मा ही सच्चा ध्यानी बन सकता है। अब विचार करो कि जो संयम के लिए प्राण
अर्पण करने को तैयार हो,
उसको खोटे मानापमान बाधा डाल सकते हैं क्या? -सूरिरामचन्द्र
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