शास्त्रों में पांच प्रकार
के चाण्डाल कहे गए हैं-
ईर्ष्यालु, पिशुनश्चैव, कृतघ्नो, दीर्घरोषकः।
चत्वारः कर्मचाण्डालः, जाति चाण्डालश्च पंचम।।
ईर्ष्यालु, चुगलखोर, अहसानफरामोश और
महाक्रोधी (लम्बा वैर या दुराग्रह पालने वाले) ये चार कर्म से चाण्डाल हैं और
पांचवां जो कर्मसत्ता की मजबूरी के कारण जाति से चाण्डाल है।
कर्म से जो चार प्रकार के
चाण्डाल बताए गए हैं, वे कभी विश्वसनीय नहीं हैं, भरोसे लायक नहीं हैं और
उनसे सदैव बचना चाहिए। वर्त्तमान माहौल के मद्धेनजर ऐसी
चांडाल प्रवृत्तियां हम में न आए इसका विशेष ख़याल रखने की आज आवश्यकता है. -सूरिरामचन्द्र
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