एक बात बहुत
गम्भीरता पूर्वक विचारणीय है कि क्या धनी लोगों का व्यवहार ऐसा है कि जिससे चोरी
करने वाले मनुष्यों का भी हृदय परिवर्तन हो जाए? अथवा उन धनी लोगों
का व्यवहार क्या ऐसा है कि जिससे जो चोरी करने वाले नहीं हैं, उन्हें भी चोरी करने
की प्रेरणा प्राप्त हो? अभी आप अन्य धनवानों के विषय में न सोचकर अपने स्वयं
के व्यवहार का ही विचार करें। हम सुनते हैं उससे हमें लगता है कि आजकल अनेक मनुष्य
इस प्रकार के हैं कि जो अपने दुर्व्यवहार के कारण ही अपने सेवक आदि को चोर बना
देते हैं। दूसरे चोर तो जब आएंगे और चोरी करेंगे, तब की बात भिन्न है, परन्तु आपका स्वयं
का नौकर कुछ चुरा न ले जाए, उसकी आपको कितनी चिन्ता रहती है? ‘मेरा नौकर मेरा कुछ
चुरा ले जाएगा तो’, ऐसी हृदय की पीडा का आपने कभी अनुभव किया है अथवा
नहीं? आए दिन ऐसी घटनाएं होती रहती है और लोग कहते हैं कि मनुष्यों का हृदय अत्यंत
कुत्सित हो गया है।
लेकिन, जरा दिल पर हाथ रखकर
सोचिएगा कि जिन मनुष्यों का हृदय अत्यन्त कुत्सित हो गया है, उनमें आपकी गिनती तो
नहीं है न? आपका हृदय भी अमुक मर्यादा तक ही बुरा कार्य करने में
नहीं ललचाएगा अथवा किसी भी परिस्थिति में आपका हृदय बुरा काम करने के लिए ललचाएगा
ही नहीं? आप जब यह जानने लग गए हैं कि आजकल मनुष्यों का हृदय
कुत्सित हो गया है, तो आप यदि धनी हैं तो क्या आपके हृदय में यह विचार
आया कि कम से कम मैं अपने सेवकों का तो हृदय परिवर्तन कर दूं। मैं उनके साथ इस तरह
का व्यवहार करूं कि जिससे मेरी अथवा किसी अन्य की, चाहे जितनी बहुमूल्य
वस्तु पर भी उसकी नीयत नहीं बिगडे। आप अपने सेवक को जो वेतन देते हैं, उससे यदि उसका
निर्वाह नहीं होता हो तो कदाचित उसमें चोरी करने का विचार आने की सम्भावना है अथवा
नहीं?
क्या आपके पास ऐसे
सेवक हैं, जिनका आप द्वारा दिए जाने वाले वेतन से निर्वाह नहीं
होता हो? अनेक धनी अपने नौकरों से भ्रष्टाचार कराते हैं, उनसे ऐसा कार्य
कराते हैं, जिनसे उन्हें चोरी करने की प्रेरणा प्राप्त होती है
अर्थात् वे उन्हें चोरी करने की प्रेरणा देते हैं, नौकरों के सामने झूठ
बोलकर उन्हें झूठ बोलना सिखाते हैं। कुछ धनी लोग अपने सेवकों के साथ कृपणता एवं
निर्दयता का व्यवहार करके भी उन्हें चोरी करने की प्रेरणा देने जैसा कार्य करते
हैं। आप तो ऐसे धनवान नहीं हैं न? आप तो अपने सेवकों के साथ ऐसा ही व्यवहार करते होंगे न
कि जिससे उनके हृदय में चोरी करने का विचार आए ही नहीं? मनुष्यों के हृदय
कितने ही कुत्सित हो गए हों फिर भी वे हैं तो मनुष्य ही, यह हमें नहीं भूलना
चाहिए। उनकी मानवता पर कुविचारों का जो आवरण चढ गया है, उसे यदि आप हटा दें, उसे यदि आप अपनी
उदारता से साफ कर दें, तो वे मनुष्य जीवन में आपका उपकार कभी नहीं भूलेंगे।-सूरिरामचन्द्र
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