जैनों, अग्रवालों, माहेश्वरियों, ब्राह्मणों, क्षत्रियों
राजस्थान में आपके बच्चों का कोई भविष्य नहीं है
कहीं आपके प्रतिभावान बच्चे आत्महत्या नहीं करलें
या अपराध मार्ग पर नहीं चले जाएं !
सावधान हो जाइए, अन्यथा आरक्षण का भूत आपके
बच्चों को निगल जाएगा!
राजस्थान सरकार ने आपके लिए आत्मघाती आरक्षण नीति बना रखी है।
इस बार भी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए जो रिजल्ट दिया गया है, उसमें OBC, SC व ST के बच्चों को उनके रिजर्व कोटे
के अलावा जनरल सीटों में भी प्रवेश दे दिया गया है, अब जनरल के बच्चे कहां जाएंगे? यह एक
बडा सवाल है। सभी वर्गों में जब न्यूनतम योग्यता तय है और उसमें इन वर्गों को रियायत
दे दी गई है तो फिर जनरल के कोटे में इनको स्थान देने का क्या औचित्य है, चाहे इन वर्गों का बच्चा 100 में से 100 नम्बर लाए! यह अच्छी बात है कि
इन वर्गों के बच्चे भी पढने लगे हैं और प्रतिभासम्पन्न हो रहे हैं तो फिर आरक्षण ही
हटा दीजिए न! या फिर उन्हें अपने वर्गों में ही प्रतिस्पर्द्धा में आगे आने दीजिए!
यह कैसे चलेगा कि मैं मेरा तो खाऊंगा ही, लेकिन दूसरे का भी खाऊंगा!
पडौस के गुजरात में और अन्य कई राज्यों में जनरल की सीटें जनरल के बच्चों से ही
भरी जाती है और आरक्षित वर्ग की सीटें आरक्षित वर्ग से ही भरी जाती है। राजस्थान में
जनरल के साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों? यहां अलवर, सवाईमाधोपुर, कोटा आदि क्षेत्रों में बसे मीणा जो कि वहां का सम्पन्न और जागीरदार
समुदाय है और आदिवासी मीणाओं के नाम पर आरक्षण का लाभ प्राप्त कर रहे हैं, जबकि असली आदिवासी भील आज भी गरीबी की चक्की में पीसा जा रहा
है, यह उधर के सम्पन्न मीणाओं की ही
चाल है। क्योंकि यहां से बडी तादाद में लोग IAS,
IPS, RAS, RPS व अन्य अधिकारी हैं। ये ही वे लोग हैं जो राजस्थान सरकार की
नीतियों में अपना दबदबा बनाए हुए हैं। दूसरी जातियां इनके आगे पंगु है, वहीं इनके सामने राजनेता और कानून सब बौने हैं; लेकिन यह कब तक चलेगा? राजस्थान में एक और संकट है, वह यह
कि राजस्थान कोचिंग इंस्टीट्यूट्स का हब बन गया है। दूसरे प्रदेशों के बच्चे यहां दो-तीन
वर्ष कोचिंग के लिए आते हैं और यहीं से NEET आदि परीक्षाओं में बैठते हैं और यहीं की सीटें खा जाते हैं, अब राजस्थान के मूल निवासी बच्चे कहां जाएंगे? जबकि दूसरे राज्यों में यह समस्या नहीं है। सोचिए जरा! कहीं
आपका जमीर जागे तो जरूर बताइएगा!
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