धन के संबंध में
आपकी स्थिति सामान्य होते हुए, अपनी जीविका चलाने के लिए पर्याप्त होते हुए भी आपके
हृदय में धन-प्राप्ति की तीव्र लालसा है और उसके लिए दिन-रात जुगाड करने में ही
अपनी सारी ऊर्जा को भी लगा रहे हैं। अतः आपको पापोदय और पुण्योदय का विचार तो
अवश्य करना ही चाहिए। कोई व्यक्ति धन की इच्छा करे और उसे धन प्राप्त हो ही जाए, ऐसी बात तो नहीं है।
जो धन प्राप्ति के लिए अथक परिश्रम करे, उसे धन प्राप्त होगा
ही, यह बात भी नहीं है। धन-प्राप्ति की लालसा भी हो और उसके लिए परिश्रम भी किया
जा रहा हो, तो भी धन प्राप्त न हो तो क्या हो? उस समय ऐसे मनुष्यों
की कैसी दशा होती है? उनका मन अत्यंत दुःखी और बैचेन हो जाता है, वे दीन बन जाते हैं।
वे हताश-निराश होकर सिर पर हाथ रखकर बैठ जाते हैं, उनकी इच्छा रोने की
हो जाती है। जिस स्थान पर स्वयं तो नहीं कमा सके हों, उलटा धन खोकर लौटे
हों; उस स्थान पर ही अन्य लोग कमा गए हों, तो उन लाभ कमाने
वालों के प्रति ईर्ष्या भी हो सकती है। समाज-व्यवस्था, शासन-व्यवस्था आदि
के प्रति भी हृदय में रोष उत्पन्न होने की संभावना रहती है। धनवानों का धन छीनकर
सब लोगों में वितरण कर दिया जाना चाहिए; ऐसे विचार उठने की
संभावना भी रहती है।
इस तरह अनेक
मनुष्यों का अहित करने के विचारों से हृदय की व्याकुलता बढ जाती है। मनुष्य
किंकर्तव्य विमूढ बन जाता है कि क्या करूं और क्या न करूं? इस सबका मूल क्या है? इस सबका मूल धन की
लालसा है। इस लालसा ने ही परिश्रम कराया। यदि परिश्रम का सुफल प्राप्त हो जाए और
इच्छा से अधिक धन की प्राप्ति हो जाए, तो तो ऐसे विचार आने
की संभावना नहीं रहती; परन्तु ऐसे मनुष्यों को इस प्रकार के विचार नहीं आते, इनसे भी उत्तम विचार
आते हैं, यह भी मानने जैसी बात नहीं है। धन प्राप्ति ही उत्तम
विचारों का कारण नहीं है। उत्तम विचारों का कारण तो दूसरा ही है। उत्तम विचारों का
कारण यदि धन-प्राप्ति ही हो तो जिन्हें धन प्राप्त हो जाए, उन्हें तो उत्तम
विचार आने ही चाहिए; पर ऐसा नहीं होता और जिस मनुष्य में जितना विवेक होता
है, उसे उस प्रमाण में उत्तम विचार आए बिना रहते ही नहीं। ऐसे मनुष्य धन प्राप्त
करते हैं तो भी उनमें उत्तम विचार आते हैं और कदाचित् उनका धन चला जाए तो भी उनमें
उत्तम विचार ही आते हैं। थोडा बहुत भी विवेक जहां नहीं होगा, वहां अधिक धन
प्राप्ति के बावजूद संतोष की झलक दिखाई नहीं देगी। यदि विवेक का अभाव होगा तो
धन-प्राप्ति के साथ-साथ और अधिक प्राप्त करने की लालसा बढती ही जाएगी। जिन
व्यक्तियों की ऐसी दशा है, उन्हें पापोदय और पुण्योदय का विचार अवश्य करना
चाहिए। तभी वे अपने मन पर कुछ नियंत्रण रख सकते हैं और व्याकुलता व शोक से बच सकते
हैं।-सूरिरामचन्द्र
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