ज्ञान-बुद्धि एवं सामग्री का जैसा सदुपयोग इस मनुष्य जीवन में होना चाहिए, वैसा
यदि न हो तो,
वैसा करने के लिए अन्य कोई भी स्थान नहीं है। जब तक आत्मा
और आत्मा के धर्मों का स्वरूप समझ में न आए, तब तक कोई भी अपना कर्तव्य
यथास्थित स्वरूप में नहीं कर पाएगा। जिस दिन हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझ जाएगा, उस
दिन विग्रहों का स्वयं शमन हो जाएगा। हम अपना कर्तव्य नहीं समझ पाते उसका मुख्य
कारण है कि हम ‘आत्म-तत्व’
को ही भूल गए हैं।
‘मुझे
यह शरीर छोडकर अन्यत्र जाना है’, यह विचार जो प्रत्येक व्यक्ति के मन में
सदैव जीवित-जागृत रहना चाहिए, वह बिसर गया है। ‘यहां
से जाने के बाद मेरा क्या होगा?’ यह चिन्ता आज लगभग नष्ट हो गई है। "मैं
मरने वाला हूं",
यह खयाल हर पल रहे तो जीवन में बहुत-सी समझदारी आ जाए। भावी
जीवन को मोक्ष मार्ग का आधार बनाने के प्रयत्न शुरू हो जाएं। सिर्फ वर्तमान की
क्रियाएं, पेट भरना,
बाल-बच्चे पैदा करना और मौजमजा करना, ये क्रियाएं
तो कौन नहीं करता है?
पशु-पक्षी और तुच्छ प्राणी भी अपने रहने के लिए घर बना देते
हैं, वर्तमान की इच्छापूर्ति करते हैं और आपत्ति में भागदौड भी करते हैं। मात्र
वर्तमान का विचार तो क्षुद्र जंतुओं में भी होता है। भावी जीवन का विचार छोडकर जो
सिर्फ वर्तमान के ही विचारों में डूबा रहता है, वह अपने कर्त्तव्य पालन से
च्युत हुए बिना नहीं रहता है।-सूरिरामचन्द्र
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