हमें ऐसे धर्म की जरूरत है जो जीवन में हर पल, हर क्षण साथ रहे। कुछ
स्थानों या समय पर ही धर्म हो, ऐसा नहीं। धर्म तो जीवन में सर्वत्र और हर
पल होना चाहिए। आप पेढी पर बैठे हों, बाजार में व्यवसाय करते समय
कोई सौदा कर रहे हों,
अपने मित्रों के साथ बातचीत कर रहे हों या आनंद-प्रमोद की
कोई क्रियाएं करते हों,
इन सभी अवसरों पर धर्म आपके साथ होना चाहिए। इतना ही नहीं, आप
खाते-पीते हों,
उठते-बैठते हों, बातचीत करते हों या कहीं
घूमते-फिरते हों,
सब काल और सब काम में धर्म होना आवश्यक है।
इस तरह हर समय धर्म साथ में रहने से किसी भी काम के समय आपको विचार आएगा कि ‘मैं
जो प्रवृत्ति कर रहा हूं,
वह किसी को भी प्रतिकूल तो नहीं है न? किसी
की प्रतिकूलता मेरी अनुकूलता नहीं बननी चाहिए या किसी की अनुकूलता खत्म करके, मुझे
अनुकूलता नहीं चाहिए।’
यह विचार आपको तभी आएगा, जब आपकी आत्मा सच्ची विवेकी
और जागृत बनेगी। आपको सोचना चाहिए कि दूसरों की अनुकूलता छीनने का मुझे क्या हक है? यदि
ऐसा नहीं सोचेंगे तो आपकी आत्मा हर पल, हर क्षण पाप करने का मौका
मिलते ही कोई न कोई पाप अवश्य करेगी और फिर इसके दुष्परिणाम आपको भुगतने ही होंगे, आपके
मन की शान्ति भंग हुए बिना नहीं रहेगी।-सूरिरामचन्द्र
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें