जीवन को धन्य बनाने की बात तभी बन सकती है, जबकि जीवन को सही रूप से समझ
लिया जाए। अभी हममें से बहुत कम व्यक्ति ऐसे होंगे, जिन्होंने जीवन को
सर्वांगीण रूप से सर्वतोभावेन समझ लिया हो। आप आज आत्मा की मूल सत्ता को भुलाए
बैठे हैं। आप शान्ति को,
आनन्द को पाना चाहते हैं, लेकिन उसे बाहर ही
बाहर खोज रहे हैं। पर पदार्थों में, पर-घरों में शान्ति खोज रहे
हैं। यह जीवन नहीं है। जीवन एक पवित्र यज्ञ है। लेकिन, उन्हीं
के लिए जो सत्य के लिए अपनी आहुति देने को तैयार होते हैं। जीवन एक अमूल्य अवसर
है। लेकिन, उन्हीं के लिए जो साहस,
संकल्प और श्रम करते हैं। जीवन एक वरदान देती चुनौती है।
लेकिन, उन्हीं के लिए जो उसे स्वीकारते हैं और उसका सामना करते हैं। जीवन एक महान
संघर्ष है। लेकिन,
उन्हीं के लिए जो स्वयं की शक्ति को इकट्ठा कर विजय के लिए
जूझते हैं। जीवन एक भव्य जागरण है। लेकिन, उन्हीं के लिए जो स्वयं की
निंद्रा और मूर्च्छा से लडते हैं। जीवन एक दिव्य गीत है। लेकिन, उन्हीं
के लिए जिन्होंने स्वयं को परमात्मा का वाद्य बना लिया है। अन्यथा, जीवन
एक लम्बी व धीमी मृत्यु के अतिरिक्त कुछ नहीं है। जीवन वही हो जाता है, जो
हम जीवन के साथ करते हैं। अतिदुर्लभ यह मानव जीवन, जिसके लिए देवता भी
तरसते हैं, वह सिर्फ खाने-पीने और सोजाने के लिए नहीं है, अपितु प्रमाद को छोडकर, अपने
कर्मों का क्षय कर आत्मा को परमात्मा बनाने के लिए, अक्षय आनंद और अक्षय
सुख प्राप्त करने के लिए है। संसार में फिर जन्म न लेना पडे, भटकना
न पडे, इसके लिए पुरुषार्थ करने के लिए यह जीवन है।-सूरिरामचन्द्र
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