मनुष्य मात्र को यह विचार करना चाहिए कि हमको जिस प्रकार हमारा जीवन प्रिय है, उसी
प्रकार जगत के सभी जीवों को भी उनका जीवन प्रिय है। जगत में कोई जीव दुःखी नहीं
होना चाहता, सभी सुखी होने की इच्छा रखते हैं। दुःख को दूर करने का और सुखी बनने का एक ही
मार्ग है और वह है- हम दूसरे को दुःख न दें और जहां तक संभव हो सके दूसरे को सुख
पहुंचाने का प्रयास करें। हमें दुःख प्रिय नहीं है तो दूसरे को दुःखी करने, दुःख
पहुंचाने से दूर रहना और हमें सुख अच्छा लगता है तो कम से कम किसी दूसरे का सुख
नहीं छीनना। दूसरे को दुःख देना या किसी का सुख छीनने का प्रयास करना, यह तो
अपने ही हाथों से अपने लिए दुःख उत्पन्न करना है।
किसी को दुःख नहीं देना है और किसी का सुख नहीं छीनना है, ऐसा
दृढ निश्चय होते ही आप उसका अनुसरण कर देंगे तो आपके लिए अक्षय सुख के द्वार खुलते
देर नहीं लगेगी।-सूरिरामचन्द्र
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