ज्ञानी पुरुषों ने ब्रह्मचर्य की नौ बाडों का वर्णन किया है। माता और बहन के
साथ भी युवा पुत्र या भाई को एकान्त में नहीं रहना चाहिए। यह जरूरी नहीं कि
प्रत्येक का इस प्रकार पतन हो, परन्तु ये भी पतन की ओर ले जाने वाले
संयोग उत्पन्न कर सकते हैं। आज तो इस विषय में अनेक अमर्यादाएं बढ रही है, इसका
कारण है विषयाभिलाषा की तीव्रता। जवान लडके और लडकियां आज जिस छूट-छाट को भोगने के
लिए ललचा रहे हैं,
उनके कितने गंभीर परिणाम आते हैं? इसका
विचार सबको करना चाहिए। सिनेमा आदि विषय-विकारों को बढाने वाले संसाधन आज बढते ही
जा रहे हैं। आज की शिक्षा भी इस आग में घी का काम कर रही है। विषय-वासना के कारणों
ने आज विवाह संबंधी प्रश्नों को भी विकट बना दिया है। पहले तो मां-बाप समान कुल, शील
आदि देखकर विवाह करते थे और विवाहित बच्चे भी संतोष से जीवन व्यतीत करते थे। आज
विषय-वासनाएं बढ गई है और इसलिए पति-पत्नी में मनमेल भी नहीं रहता। प्रेम-विवाह के
नाम पर भी अनेक अनाचार चल रहे हैं और इन सभी स्थितियों में तलाक की आँधी चल रही है।
पतन की ये परिस्थितियां घर-परिवार-समाज सबको तोड रही है। क्या आर्य देश में ऐसा
होना चाहिए? ब्रह्मचर्य तो ऐसा गुण है कि उसके बिना अन्य कोई गुण शोभित ही नहीं हो सकता और
न ही स्थिरता को प्राप्त कर सकता है।-सूरिरामचन्द्र
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