सोमवार, 21 अप्रैल 2014

ईर्ष्या छोडें और सुपात्र दान करें


मानव जीवन बडे पुण्यकर्मों से मिलता है। इसे यूं ही नहीं गंवा देना चाहिए। इसे सुंदर बनाने के लिए सत्कर्म और स्वाध्याय का आश्रय लेना परम आवश्यक है। स्वाध्याय का तात्पर्य अच्छे-अच्छे ग्रंथों का अध्ययन करना तो है ही, अपना अध्ययन करना भी है। इसे आत्मनिरीक्षण की घडी भी कह सकते हैं। जब तक मनुष्य आत्मनिरीक्षण या आत्म-विश्लेषण नहीं करता, तब तक वह परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकता। परमात्म-तत्त्व की प्राप्ति के लिए ईर्ष्या, द्वेष आदि कुटिल भावनाओं का त्याग नितांत आवश्यक है। ईर्ष्या एक प्रकार की आग है, लेकिन यह ऐसी आग है जो दिखाई नहीं देती, जिसका धुआं भी दिखाई नहीं देता। जो आग दिखाई देती है, उसको बुझाना सरल है, लेकिन जो आग दिखाई नहीं देती, उसे बुझाना बहुत ही मुश्किल कार्य है।

उस ईर्ष्या रूपी आग को किस प्रकार बुझाया जाए, यह बहुत विकट प्रश्न है। इसके लिए प्राणिमात्र के प्रति सौहार्द, प्रेम, स्व-पर कल्याण की भावना पैदा करनी होगी। दुःख का सबसे बडा कारण यह है कि मनुष्य अपने घर को देखकर उतना प्रसन्न नहीं होता, जितना दूसरों के घर को जलते देखकर प्रसन्न होता है। दूसरों की प्रगति देखकर दुःखी होना और दूसरों की बर्बादी देखकर प्रसन्न होना, यही ईर्ष्या है। जहां ईर्ष्या का निवास है, वहां ईश्वरत्व की प्राप्ति नहीं हो सकती।

जीवन का उद्देश्य नहीं है, केवल खाना-पीना।

जीवन का उद्देश्य है जग में, जगना और जगाना।

जगने और जगाने का मतलब है संसार के लोगों को आत्मोन्मुख करना। यह कार्य वही कर सकता है, जिसे स्वयं आत्मानुभूति हो और जिसमें सेवा, समर्पण और परोपकार का भाव हो-

खुद कमाओ, खुद खाओ, यह मानव की प्रकृति है।

कमाओ नहीं, छीनकर खाओ, यह मानव की विकृति है।

खुद कमाओ, दूसरों को खिलाओ, यही हमारी संस्कृति है।

मानव जीवन की सफलता-सार्थकता के लिए समय का सदुपयोग करें और प्रतिदिन इतना-सा चिंतन अवश्य करें कि मैं मरने वाला हूं, मौत कभी भी आ सकती है, धन-दौलत और रिश्ते-नाते सब यहीं रहेंगे, साथ कुछ भी नहीं आएगा। ऐसे में अगले भव में मेरा क्या होगा? कहीं मैं कीडे-मकोडे, छोटे-मोटे जीव-जंतु, तीर्यंच प्राणी या ऐसी-वैसी गति में तो नहीं चला जाऊंगा? दौलत से रोटी मिल सकती है, पर भूख नहीं। दौलत से बिस्तर मिल सकते हैं, पर नींद नहीं। दौलत से पुस्तक मिल सकती है, पर ज्ञान नहीं। दौलत से महल मिल सकता है, लेकिन सुकून और शान्ति नहीं। दौलत का निराशंसभाव से सुपात्र दान करेंगे, तो सबकुछ मिल सकता है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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