शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

अरिहंत की अनोखी पहचान


श्री अरिहंत देवों को यदि आप पहचान सकें तो आपकी भक्ति में एक निराली लहर उठे। आपके स्वयं के भीतर अरिहंत बनने की क्षमता है और जिनमें अरिहंत बनने की योग्यता होती है, वे ही अरिहंत बन सकते हैं। यह योग्यता अनादिकालीन है। सभी भव्य अरिहंत बनने वाले नहीं हैं। ऐसे भी अनंत जीव हैं जो अनंतकाल तक भी अरिहंत नहीं बन सकेंगे, तो भी उनमें अरिहंत बनसकने की योग्यता तो है ही। घास में से दूध बनता है। समस्त घास में दूध होने की योग्यता है, तो भी इस संसार में जितना घास है, उस सबका क्या दूध बनेगा? नहीं बनेगा, क्योंकि योग्यता भिन्न बात है और उस योग्यता का अमल में आना भिन्न बात है। जो घास गाय, भैंस के उदर में जाता है, उसका दूध बनता है और जो घास गधे के उदर में जाता है, उसका दूध नहीं बनता; परन्तु इससे यह नहीं कहा जा सकता कि उस घास में दूध बनने की योग्यता नहीं थी।

श्री अरिहंत देवों ने जितना उद्यम किया, जैसी भावना अपनाई, वह सब दूसरों की शक्ति से परे है। इसलिए श्री अरिहंत की बोधि को वरबोधिकहा जाता है। भगवत्-भाव को उत्पन्न करने वाली यह वरबोधि है। अनादिकाल से अनंत जीव संसार में भटक रहे हैं। अरिहंतों की आत्माएं भी अरिहंत अवस्था प्राप्त करने से पूर्व इस तरह अनंतकाल तक भटकती रहती है, पर जब उनका समय आ जाता है और सद्गुरु का योग मिलने पर उन्हें बोध हो जाता है, उस समय ये जीव कठोरतम उद्यम करके अंत में केवलज्ञान प्राप्त करते हैं।

अंतिम भव में उत्पन्न होकर श्री तीर्थंकरदेव इस संसार में रहने के लिए नहीं रहते। वे परम तारणहार भोगों को रोग मानकर औषधि की तरह उनका उपभोग करते हैं। उनके च्यवन काल से ही उन परम तारणहारों की विशिष्ट प्रकार से पूजा प्रारम्भ हो जाती है। उनके च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्ष के दिन पंचकल्याणकों के नाम से जाने जाते हैं। वे तारणहार कोई इन्द्र आदि द्वारा पूजे जाने के कारण महान नहीं बनते, अपितु उनमें स्वयं में ऐसी योग्यता है, वे महान हैं, इसलिए इन्द्र आदि द्वारा पूजे जाते हैं।

श्री अरिहंत देवों के पास अपार सुख-सामग्री होती है, परन्तु वे तारणहार उस सबका परित्याग करके साधुत्व अंगीकार करते हैं। इसके बाद कठोर परिषह सहन कर अपने शेष कर्मों को खपाते हैं, उनकी निर्जरा करते हैं, उसके बाद ही वे केवलज्ञान प्राप्त कर तीर्थंकर बन सकते हैं। कोई भी अरिहंत साधु हुए बिना तीर्थंकर नहीं हो सकता। आप यदि अरिहंत देवों के इस स्वरूप से परिचित हो जाएं तो फिर आपको इस संसार में रहना अच्छा लगेगा क्या? सुख में भी आपकी व्याकुलता बढे बिना रहेगी क्या? और आप दुःख का स्वागत किए बिना रह सकेंगे क्या?-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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