मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

धन एवं भोग का सब से बड़ा निन्दक कौन?


हमारी आत्मा के सबसे बडे शत्रु तीन हैं- मिथ्यात्व, अविरति एवं कषाय! इसमें तो किसी को दो मत नहीं हो सकते। आज दुनिया में जिधर देखो यही तीन शत्रु नजर आते हैं। इन तीनों शत्रुओं का समस्त नृत्य धन एवं भोग पर ही आधारित है। अतः कहना पडेगा कि संसार में इस धन एवं भोग की प्रतिष्ठा को खडी करने वाले ने विश्व को विनाश के कगार पर पहुंचा दिया है। विश्व में जिधर भी दृष्टिपात करें सभी इन दो वस्तुओं के पीछे ही भागते हुए दृष्टिगोचर होते हैं। यही दो वस्तुएं समस्त जगडे की जड हैं।

धन एवं भोग की यदि सर्वाधिक निन्दा किसी ने की है तो वह है एक मात्र जैन शासन। तीर्थंकरों के अतिरिक्त शायद किसी ने भी धन एवं भोग की ऐसी निन्दा नहीं की। धन एवं भोग के निन्दक उन तीर्थंकरों के अनुयायी साधु आज तक संसार में विचरण कर रहे हैं। इसीलिए विश्व में कतिपय उत्तम पुरुष दृष्टिगोचर होते हैं। धन एवं भोगों के रसिक लोग यदि साधुओं के पास आएं और साधुओं से यदि धन और भोग निकृष्टतम हैं’, यह उन्हें सुनने को न मिले तो उन साधुओं के समान विश्वासघाती कोई नहीं है।

जिनकी ललाट में भोगावली कर्म लिखे गए थे, आप अपने बचाव के लिए उनकी बात करना ही मत। आपका तो भोग कर्म नहीं, अपितु पाप कर्म भारी है। भोग तो आप से दूर भागते हैं और आप उनके पीछे भूत की तरह भटक रहे हैं। त्याग-धर्म स्वीकार करने के लिए आज आप अपनी अशक्ति अथवा आसक्ति व्यक्त करते हैं, उसे मान्य करने के लिए मैं तैयार हूं, परन्तु आप जो भोगावली की ढाल धारण कर रहे हैं, उसका मैं विरोधी हूं। गृहस्थ का काम धन के बिना नहीं चल सकता, यह मैं स्वीकार कर सकता हूं, परन्तु आपके पास जितना धन है, उतने धन के बिना आपका काम नहीं चल सकता, यह बात मानने के लिए मैं तैयार नहीं हूं। आपकी आवश्यकताएं कितनी होनी चाहिए? क्या इस पर आपने कभी सोचा है? आवश्यकता से अधिक धन प्राप्त करने की इच्छा हो जाए और हृदय पर उसका आघात लगे तो समझना चाहिए कि अनन्तानुबंधी का लोभ अस्वस्थ हो गया है। लोभ अस्वस्थ होने पर मैं पूछना चाहता हूं कि आपकी आवश्यकता का प्रमाण कितना है? पिघले हुए घी से चुपडी हुई रोटी और बिना फटे हुए वस्त्र की मात्रा शास्त्रों में बताई है। इससे अधिक सामग्री चाहने वालों के लिए शास्त्रों में उल्लेख है कि धर्मात् पतित। वह धर्म से भ्रष्ट होता है।

आत्मा के तीनों वास्तविक शत्रुओं को यदि आप अच्छी तरह पहचान लो और उनके गाजे-बाजे धन और भोग इन दो वस्तुओं पर चल रहे हैं; उनका वास्तविक स्वरूप पहचान लो, तत्पश्चात ही आप धर्म सही रूप में कर सकते हैं।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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