रविवार, 27 अप्रैल 2014

संसार को ताजगी देने वाले तीन पाप


अविरति के उपासकों, मिथ्यात्वियों एवं कषायों से लिप्त जीवों का देव, गुरु धर्म के साथ कोई संबंध नहीं है। हमारी आत्मा पर ये तीन पाप अनादि काल से डेरा डाले बैठे हैं। अविरति पाप सुख की इच्छा उत्पन्न करता है और दुःख के प्रति द्वेष उत्पन्न करता है। सुखों का राग और दुःखों का द्वेष आत्मा को कहीं बुरा न लगे, उसकी निरन्तर सावधानी रखने वाला पाप मिथ्यात्व है और उसके लिए समस्त दौड-धूप कराने वाले पाप का नाम कषाय है। हमें भव-सागर में भटकाने वाले ये तीन मुख्य पाप हैं। संसार के लाल-पीले का परिणाम श्याम है। जो व्यक्ति यह बात भूल गया, वह भटक-भटक कर मरेगा। सिर पर चिन्ता की अंगीठी और हृदय में अशान्ति की अग्नि प्रज्वलित रखने वाले इस विश्व में भी यदि आपको सुख दृष्टिगोचर होता हो तो मुझे कहना पडेगा कि अभी उक्त तीनों पापों की असलियत और भगवान को पहिचानना आपके लिए कठिन है।

धर्म-सामग्री प्राप्त हो और जीव धर्म की ओर अग्रसर हो, इतने से ही कल्याण नहीं होता। जीव यदि सुख-प्राप्ति के लिए धर्म करे और थोडा-सा भौतिक सुख प्राप्त होते ही उसमें निमग्न हो जाए; फिर उस सुख की रक्षा करने के लिए अनेक प्रकार के पाप करे, तो धर्म करते हुए भी वह जीव दुर्गति में चला जाएगा। यदि जीव इस संसार को सही रूप में पहचान ले तो फिर जीव को मोक्ष के अतिरिक्त कुछ पसन्द नहीं आएगा। उसे संसार के सुख बहुत ही तुच्छ लगने लगेंगे। जिसे मोक्ष के प्रति रुचि हो जाए, वह यदि धर्म करे तो उसका कल्याण हुए बिना रह ही नहीं सकता।

वही व्यक्ति समझदार और ज्ञानी है जो यह समझता हो कि संसार में जितनी अधिक सुख-सामग्री प्राप्त हुई है, वह सब पाप सामग्री है। इस प्रकार का ज्ञान जब तक उत्पन्न नहीं होता, तब तक सुख-सामग्री हम से अधिकाधिक पाप कराती ही रहेगी। धन की शोभा विवेकपूर्ण दान है, खाना-पीना और पहनना-ओढना नहीं। पास रखी हुई खाद्य-सामग्री को खाना तो पशु भी समझता है। पशुओं की भी दो जातियां हैं। एक कौओं की जाति और दूसरी कुत्तों की जाति। खाद्य-सामग्री देखकर कौआ अपने समस्त जाति भाइयों को बुलाकर खाता है; जबकि कुत्ते की जाति तो दूसरे कुत्ते को निकट ही नहीं आने देगी। सुख-सामग्री तो आपको भी प्राप्त हुई है। आपका नम्बर उन दोनों में से कौनसा है, आपको अकेले खाना पसंद है या सबको खिलाकर खाना अथवा सबके साथ खाना पसंद है, आपको अकेले अपने स्वार्थ साधने से मतलब है कि आप सबका हित सोचते और करते हैं, इसका निर्णय तो आप ही कर सकते हैं। अविरति एक ऐसा पाप है, जो दुःख से घृणा और सुख से प्रेम उत्पन्न करता है, मिथ्यात्व उसमें साक्षी बनता है और कहता है कि यह आपकी समझदारी उचित है, और कषाय उससे संबंधित समस्त हा-हूमचाने में सहायक होते हैं।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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