गुरुवार, 25 सितंबर 2014

सम्यक्त्व मोक्ष का द्वार है


मिथ्यात्व अति भयंकर कोटि का पाप है। यह पाप जब तक बना रहता है, तब तक वस्तुतः एक भी पाप नहीं छूटता है। गाढ मिथ्यात्व की विद्यमानता में कदाचित हिसादि पापों का त्याग भी दृष्टिगोचर होता हो तो भी ज्ञानी फरमाते हैं कि वह त्याग, त्याग नहीं है; अपितु एक प्रकार का मोह का नाच ही है, क्योंकि हिंसादि को छोडने पर भी मिथ्यात्व की विद्यमानता में कदाचित हिंसादि त्याज्य हैं, ऐसे भाव उस स्थिति में पैदा नहीं होते। अतः जिन आत्माओं में अपने संसार-पर्याय के प्रति अरुचि और मोक्षपर्याय को पैदा करने की रुचि जागृत हुई हो, उन्हें सर्वप्रथम इस मिथ्यात्व दोष को छोडने के लिए प्रयत्न करने की आवश्यकता है।

आपने तो पुनः-पुनः सम्यक्त्व और मिथ्यात्व की बात सुनी है। तामली तापस मिथ्यादृष्टि था, इसीलिए उसके महातप के मूल्य की अपेक्षा भी सम्यग्दृष्टि की एक नवकारशी का मूल्य अधिक होता है, ऐसा भी आपने अनेक बार सुना है, तो फिर सम्यग्दृष्टि की नवकारशी के फल की तुलना में मिथ्यादृष्टि के महातप का फल नहीं आ सकता’, यह बात सुनने वाले, जानने वाले और बार-बार बोलने वाले आप लोगों ने सम्यक्त्व और मिथ्यात्व को पहचानने का प्रयत्न न किया हो, अथवा आपने मिथ्यात्व को छोडकर सम्यक्त्व प्रकट न किया हो, अथवा मिथ्यात्व को छोडने और सम्यक्त्व को प्रकट करने का प्रयास आप नहीं करते हैं, ऐसा तो नहीं माना जा सकता है न? आपने या तो मिथ्यात्व को छोड दिया होगा, अथवा तो मिथ्यात्व छोडने की तैयारी में होंगे, ऐसा यदि मैं मान लूं तो कोई आपत्ति है?

श्री जैन शासन में सम्यक्त्व मूलभूत वस्तु है। मिथ्यात्व संसार है और सम्यक्त्व मोक्ष का द्वार है। सम्यक्त्व किसे कहते हैं और मिथ्यात्व किसे कहते हैं, यह किसी भी समय किसी को भी सरलता से समझा सकने की आपकी तैयारी होनी ही चाहिए। मिथ्यात्व के कारण तामली तापस के महातप का भी अधिक मूल्य नहीं; तो हमारी धर्म-क्रियाएँ, यदि हममें से मिथ्यात्व न गया हो तो, हमें क्या फल देगी, ऐसी चिन्ता आपको सतत रहती है या नहीं? अभव्य और दुर्भव्य, जब जैन शासन द्वारा प्ररूपित संयम को धारण करते होंगे, धारण करके बराबर पालन करते होंगे, तब वे सारी क्रियाएं किस प्रकार करते होंगे? उनकी क्रियाओं की तुलना में जब अपनी इन धर्म-क्रियाओं को रखते हैं तो केवल धर्म-क्रिया के रूप में उनकी धर्मक्रिया विशिष्ट है या अपनी? ऐसा होने पर भी उनकी धर्म-क्रियाओं का महत्त्व क्यों नहीं? सम्यक्त्व का अभाव और मिथ्यात्व की विद्यमानता है, इसलिए न? तो ऐसे मिथ्यात्व को छोडने और सम्यक्त्व को प्रकट करने के विषय में आज बहुत अधिक उपेक्षा क्यों दृष्टिगोचर होती है? मिथ्यात्व किसे कहते हैं और सम्यक्त्व किसे कहते हैं, यह समझने के लिए आज तक आपने कितना प्रयत्न किया है? -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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