सोमवार, 29 सितंबर 2014

आचरण से जैन बनें


अंग्रेजी न पढा हुआ पिता संतति को अंग्रेजी पढाता है। यदि संतति ठीक से न पढे तो कहा जाता है कि, ‘मैं अंग्रेजी नहीं पढा, इससे पेढी का पत्र व्यवहार दूसरे से करवाना पडता है। कुछ लिखना-पढना हो तो दूसरे की राह देखनी पडती है। अन्य के सामने पेढी की गोपनीयता खुल जाती है, अतः ध्यान देकर पढो, जिससे ऐसा प्रसंग न आए। हमें तो पढाने वाले नहीं मिले, जिससे अनपढ रहे, परन्तु तुमको तो यह सुविधा है, फिर इतनी गफलत क्यों करते हो? ऐसा तत्त्वज्ञान के विषय में भी विचार आता है क्या? उस अंग्रेजी न पढे हुए पिता को जितना दुःख है, उतना दुःख आपको तत्त्वज्ञान न होने का है क्या? अंग्रेजी के ज्ञान की आवश्यकता जितनी महसूस की जाती है, उतनी तत्त्वज्ञान की आवश्यकता महसूस होती है क्या?

आप यदि सचमुच धर्म के रंग से रंगे हुए होते तो आपने तत्त्वज्ञान प्राप्त करने का परिश्रम किया होता। ऐसा अनुभव होता कि, सद्भाग्य से ऊंचा मार्ग मिला तो भी कोरे रह गए। यदि आपको ऐसा अनुभव हुआ होता, तो आपकी संतति का पाक ऐसा नहीं आता। आपकी संतान तत्त्वज्ञान से रहित रहे, इसमें आपका भी बडा दोष है। यह दोष भी आज आपको अधिक दोष रूप नहीं लगता, क्योंकि आपके हृदय में तत्त्वज्ञान प्राप्त करने की तीव्र अभिलाषा समुचित रूप में प्रकट ही नहीं हुई है।

जैन कुल में जन्मे हुओं के लिए मिथ्यात्व निकालना और सम्यक्त्व प्रकट करना बहुत सुलभ है, ऐसा अवश्य कहा जा सकता है। परन्तु, वह भी यदि असद् आग्रह में पड जाए अथवा तत्त्वातत्त्व को जानने का प्रयास ही न करे तो सम्यक्त्व कहां से प्राप्त करे? जैसे व्यवहार में जितने वणिक उतने शाह कहे जाते हैं, परन्तु जितने शाह कहे जाते हैं, वे सब साहूकारी निभाते हैं, ऐसा नहीं माना जा सकता। कोई व्यक्ति शाह लिखा हुआ पढकर पांच हजार रुपये अमानत रख जाए तो वह अमानत की रकम ही गंवा बैठे, यह भी संभव है न? जितनों को सेठलिखा जाता है, वे सब श्रेष्ठ ही हैं, ऐसा नहीं है न? ऐसे ही आज जैन कुल में जन्म लेने के कारण जितने जैन कहलाते हैं, वस्तुतः आचरण से उतने जैन हैं नहीं। यह बहुत ही दुःख और लज्जा की बात है।

जैन कहलाने मात्र से आपकी दुनिया के सामने एक अलग छवि और प्रतिष्ठा बन जाती है, दुनिया के सामने आपकी विश्वसनीयता बढ जाती है; तो वास्तव में सम्पूर्ण आचार-विचार से यदि आप सम्यक्त्वी बनेंगे, जैन बनेंगे तो आपकी छवि और भी कितनी उज्ज्वल बनेगी और साथ ही आपका आत्म-कल्याण भी निश्चित रूप से हो सकेगा।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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