मंगलवार, 9 सितंबर 2014

मानसिक अस्वस्थता का मतलब पागलपन नहीं


World Suicide Prevention Day 10th September special

मानसिक अस्वस्थता का मतलब पागलपन नहीं

कई लोग डिप्रेशन, तनाव और कई प्रकार की मानसिक परेशानियों से गुजरते हुए भी मनोवैज्ञानिक परामर्श के लिए आते हुए इसलिए संकोच करते हैं या हिचकिचाते हैं कि लोग क्या सोचेंगेया मनोवैज्ञानिक परामर्श का यह कह कर विरोध करते हैं कि मैं पागल थोडे ही हूं

दरअसल यह एक मिथ्या धारणा है कि मनोवैज्ञानिक परामर्श के लिए पागल लोगों को ले जाया जाता है। पागलों की जगह सिर्फ पागलखाने में है। मनोवैज्ञानिक परामर्श के लिए तो अच्छे-अच्छे बुद्धिजीवी, विद्वान, अधिकारी, राजनेता, होनहार-प्रतिभा सम्पन्न विद्यार्थी और कई बडी हस्तियां भी पहुंचती है, क्योंकि वर्तमान प्रतिस्पर्धात्मक युग में भविष्य की चिन्ता और दौड, काम के दबाव, व्यावसायिक उतार-चढाव या पारिवारिक कारणों आदि से कोई भी तनावग्रस्त या अवसादग्रस्त हो सकता है, एकाग्रचित्तता या आत्म-विश्वास में कमी आ सकती है। कई बार चिन्ताओं, संशयों, परीक्षा आदि से भी व्यक्ति भयग्रस्त हो कर, चिन्तातुर हो कर अवसाद का शिकार हो सकता है, उसका नकारात्मक सोच व व्यवहार बन सकता है। मानसिक परेशानियों, उलझनों के कई कारण हो सकते हैं और इन परिस्थितियों से उबरने के लिए मनोवैज्ञानिक परामर्श लेना पागलपन नहीं; समझदारी है। महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन लर्निंग डिसऑर्डर के शिकार हुए थे, बिजली के बल्ब का आविष्कार करने वाले एडीसन को बचपन में मंदबुद्धि समझा जाता था। ऐसे एक-दो नहीं सैकडों उदाहरण हैं, जब कई महान हस्तियों ने मनोवैज्ञानिकों की सेवाएं ली हैं।

अमरीका जैसे विकसित राष्ट्र की अधिकांश आबादी ने कभी न कभी मनोवैज्ञानिक परामर्श अवश्य लिया है और आधी से ज्यादा आबादी नियमित मनोवैज्ञानिकों के सम्पर्क में है। यहां विद्यार्थियों के लिए भी प्रत्येक स्कूल-कॉलेज की हर कक्षा के लिए अलग-अलग मनोवैज्ञानिकों की सेवाएं निर्धारित हैं। स्कूल-कॉलेजों, उद्योगों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में मनोवैज्ञानिक परामर्श केन्द्र हैं। यहां तक कि किसी भी प्रकार की कोई बडी गंभीर बीमारी है, हार्ट का मामला है या किसी प्रकार की अन्य बडी सर्जरी का मामला है, डॉक्टर मरीज को पहले साइकोलॉजिस्ट के पास रेफर करता है और फिर अपना उपचार या सर्जरी करता है। कमोबेश यही स्थिति ब्रिटेन, जर्मनी और जापान की है। रूस और चीन में भी मनोवैज्ञानिकों की मांग निरंतर बढ रही है।

खेल प्रतिस्पर्धाओं में और प्रत्येक टीम के आत्म-विश्वास व मनोबल को बनाए रखने के लिए मनोवैज्ञानिकों की भूमिका जग-जाहिर है। मनोवैज्ञानिक परामर्श के समय हमें अपनी मन की उलझनें खुलकर बतानी चाहिए, ताकि सही समाधान का रास्ता मिल सके। परामर्श केन्द्र में आपकी पूरी गोपनीयता रहती है।

आत्महत्या के कारण

  • ब्रेन में सेरोटोनिन की कमी। प्रोजेस्ट्रोन हारमोन की गडबडी। मस्तिष्क के रसायनों में असंतुलन, अवसाद एवं अन्य मानसिक बीमारियां, अनिद्रा और दुश्चिंताएं।
  • भौतिकता की चकाचौंध में टिक पाने अथवा अत्यधिक महत्वाकांक्षाओं के दबाव में मां-बाप की बच्चों से उनकी क्षमता से अधिक अपेक्षाएं।
  • मां-बाप से बच्चों की बढती दूरियां।
  • परीक्षा में असफलता।
  • प्यार के संबंध में गलत अवधारणा, आकर्षण को प्यार मान बैठना और प्यार में असफलता। 
  • क्षमता से अधिक कर्ज। 
  • शराब, नशीले पदार्थों, एंटीडिप्रेसेंट दवाओं का दुष्प्रभाव।
    फास्ट फेक्ट

  • हत्या की तुलना में आत्महत्या से ज्यादा मौतें।
  • मध्यम वर्गीय परिवारों में आत्महत्याएं ज्यादा हो रही है।
  • एड्स, केंसर, दिल की बीमारी और फेंफडों की बीमारी से मरने वालों की संख्या की तुलना में आत्महत्या करने वालों की संख्या ज्यादा है।
  • 15 से 44 वर्ष की आयु में होने वाली मौतों में आत्महत्या तीसरा सबसे बडा कारण।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पिछले 45 वर्षों में आत्महत्या करने वालों की संख्या में 60 फीसदी बढोतरी हुई है। भारत में पिछले बीस वर्षों में ढाई गुनी हुई।
  • आत्महत्या करने वालों की तुलना में इसका प्रयास करने वालों की संख्या 20 गुना।
  • अवसाद ला-ईलाज बीमारी नहीं। इसके लिए जीवन भर दवाएं लेना भी जरूरी नहीं।
    आत्महत्या का विचार आने पर

  • परिवार के लोग घर का माहौल सकारात्मक बनाएं और ऐसे व्यक्ति के प्रति सहयोगात्मक रवैया अपनाएं। उदास व्यक्ति से अधिक बातचीत करें, उसे ध्यान से सुनें.
  • सैर-सपाटे, धार्मिक या मनोरंजन के आयोजन कि व्यवस्था करें.
  • उसे भावनात्मक समर्थन दें, धैर्य-समझ-स्नेह और प्रोत्साहन दें.
  • दिनचर्या में व्यस्तता लाएं.
  • उसे डायरी लिखने को प्रेरित करें.
  • कार्य योजना बनाएँ.
  • साइकोलोजिस्ट से सम्पर्क करें।
  • घर में हथियार, एसीड या जहरीली वस्तुएं न रखें।
  • नशे और नींद की गोलियों का सेवन न करें।
  • सावधानी पूर्वक ऐसे मित्र का चयन करें, जिसे आप अपने दिल का दर्द या परेशानियां बता सकें।
  • कभी भी रोनी सूरत और शिकायती लहजा न रखें.
  • मनोवैज्ञानिक परामर्श केन्द्र में परामर्श प्राप्त करें।
    सावधानियां बरतें

  • लोग समझते हैं कि आत्महत्या करने वाले कभी किसी को बताते नहीं हैं या जो बोलते हैं वे आत्महत्या नहीं करते, किन्तु अध्ययन बताते हैं कि आत्महत्या करने वालों में 80 फीसदी ऐसे हैं, जो मरने से पहले किसी को न किसी को अपने आत्महत्या का विचार बता देते हैं।
  • यह मिथ है कि आत्महत्या करने पर आमादा व्यक्ति किसी की नहीं सुनता और मर जाता है। सच्चाई यह है कि आत्महत्या करने वालों में से अधिकांश के मन में यह भावना होती है कि मैं आत्महत्या का प्रयास करूं और कोई मुझे बचा ले, मेरा दर्द कोई सुने, मेरी तकलीफ या कारणों की तरफ किसी का ध्यान जाए और समाधान हो जाए। ऐसे मामलों में मनोवैज्ञानिकों की भूमिका भी काफी कारगर होती है।
  • आत्महत्या के विचार वाला व्यक्ति बार-बार आत्महत्या का प्रयास कर सकता है।
  • आत्महत्या करने वाले सभी लोग मानसिक रोगी हों यह जरूरी नहीं, कई लोग क्षणिक आवेग में भी ऐसा कदम उठा सकते हैं।
    रिस्क फेक्टर्स

  • लगातार उदासी या खालीपन. दो सप्ताह से ज्यादा काम-काज में मन नहीं लगना.
  • जिंदगी व भविष्य के बारे में निराशाजनक विचार आना.
  • अकेलापन अच्छा लगना व बहुत कम बात करना.
  • ध्यान लगाकर काम नहीं कर पाना, कमजोर स्मृति महसूस करना, थकावट महसूस करना.
  • जिन परिवारों में पहले कोई आत्महत्या कर चुका है, उन्हें मामूली से डिप्रेशन में भी सावधानी बरतनी चाहिए।
  • कोई पहले आत्महत्या का प्रयास कर चुका है।
  • कोई पहले डिप्रेशन, एंग्जाईटी, ओसीडी, सिजोफ्रेनिया, हिस्टीरिया या अन्य किसी मानसिक रोग का शिकार रहा है या वर्तमान में मानसिक रोगों से ग्रस्त है।
  • कोई नींद की गोलियां अथवा अवसाद निरोधक दवाएं ले रहा है।
  • परिवार में किसी की आकस्मिक मृत्यु, तलाक या प्रेम में असफलता।
  • सामाजिक प्रताडना या उपेक्षा का शिकार।
  • नशीली दवाओं, नशीले पदार्थों या शराब का बहुत ज्यादा सेवन करने वाले।
  • बहुत क्रोधी अथवा पारिवारिक लडाई-झगडों से प्रभावित।
  • जिनके घरों में हथियार अथवा जहरीली चीजें हैं।

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