मंगलवार, 10 मार्च 2015

जर, जमीन और जोरू, ये तीनों कजिया के छोरू



"जर, जमीन और जोरू, ये तीनों कजिया के छोरू"। जर यानी धनमाल, जमीन यानी भूमि, मकान आदि और जोरू यानी स्त्री; ये तीनों झगड़े के कारण हैं। इनके संसर्ग में रहकर शान्ति की बात करना निरर्थक है। जर, जमीन और जोरू का मोह शान्त होना बहुत मुश्किल होता है। ये तीनों भयंकर विषय-कषाय के कारण हैं और दुर्गति में ले जाने वाले हैं, लेकिन जमानावादी इन्हीं में मस्त और मशगूल रहते हैं। संसार में मस्त रहने वाली आत्माओं को दुर्गति में ले जाने वाले कार्यों से भी आनन्द होता है। इन तीनों पौद्गलिक वस्तुओं की ममता छुडवाने के लिए तीर्थ की स्थापना है। लेकिन, पौद्गलिक लालसाओं में सडने वाली आत्माएं वास्तविक भक्ति कर ही नहीं सकती। उन आत्माओं को यह ज्ञान ही नहीं होता कि भक्ति का उत्कर्ष किस बात में है और अपकर्ष किस बात में है? संसार में मग्न, भोगों में आसक्त और एकान्त विषयों के अधीन बनी आत्माओं को यह ध्यान ही नहीं रहता। अतः यदि धर्मात्मा बनना चाहो तो अधर्म को खोटा मानना सीखो। धर्मपरायण होना हो तो पाप को पाप समझो। अधर्म का त्याग किए बिना हृदय में धर्म नहीं आ सकता। जब तक आप पाप को पाप नहीं मानेंगे, तब तक पुण्य कार्य के प्रति आपके हृदय में सच्चा प्रेम उत्पन्न नहीं होगा। यदि पाप को पाप मानते हो तो संसार की कोई भी वस्तु आपको व्याकुल नहीं कर सकेगी।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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