मंगलवार, 17 मार्च 2015

आत्म-निन्दा आत्मा की योग्यता


आत्म-निन्दा आत्मा की योग्यता

आत्म-निन्दा, यह आत्मा की योग्यता को सूचित करने वाली है, मनुष्य में प्रमादवश या अज्ञानवश पाप हो जाना, यह स्वाभाविक है, किन्तु पाप यदि हृदय में चुभे नहीं तो धर्म को पाने की भी योग्यता चली जाती है। तो धर्म आचरण करने की तो बात ही कहां रही? इसलिए जो कोई स्वयं को धर्म पाने के योग्य बनाने की इच्छा रखता हो अथवा प्राप्त धर्म को स्थिर रखने की इच्छा रखता हो, उनके पाप कम हो जाएं तब तक आत्म-निन्दा करते हुए स्वयं पर धिक्कार की वर्षा करते रहना सीखना चाहिए। इस प्रकार से जो स्वयं के पाप के लिए आत्म-निन्दा का शिक्षण लेते हैं, वे क्रमशः पाप से पीछे हटते जाते हैं। लेकिन, जिनको पाप का भय नहीं होता, पाप की तरफ तिरस्कार नहीं होता, स्वयं की जात को पाप से बचाने की इच्छा नहीं होती और पापकर्म के प्रति जिनके हृदय में घृणा नहीं होती है, वे पाप से बच नहीं सकते हैं, अपितु उल्टे पापमयता में अधिक से अधिक डूबते जाते हैं। बहुत से लोग कहते हैं कि इसमें पाप, उसमें पाप, तो फिर करना क्या?’ सबसे पहले पाप से बचने के लिए हृदय में पाप का भय पैदा करना चाहिए। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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