मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

मोक्ष के लिए इच्छा व पुरुषार्थ करें


ग्रंथिदेश पर आए हुए जीवों को अपनी भाग्यशालिता को सफल बनाने के लिए, सर्वप्रथम ग्रन्थि को भेदने का पुरुषार्थ करना होता है। जहां तक ग्रंथिभेद नहीं होता, वहां तक उत्तरोत्तर प्रगति कर पाना संभव नहीं होता। इस ग्रंथिभेद को करने में काल की परिपक्वता की भी अपेक्षा रहती है। चरमावर्त को प्राप्त जीव को, अर्थात् जिस जीव की मुक्ति एक पुद्गल परावर्तकाल के अंदर-अंदर होने वाली है, उस जीव को मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा हो सकती है। एक पुद्गल परावर्तकाल या इससे अधिक काल पर्यंत जिस जीव को संसार में परिभ्रमण करना है, उस जीव को तो मोक्ष पाने की इच्छा भी नहीं होती। मोक्ष की इच्छा उत्पन्न हो सके तो वह चरमावर्त काल को प्राप्त जीव में ही पैदा हो सकती है।

मोक्ष की इच्छा पैदा होने के पश्चात भी तत्काल ही ग्रंथिभेद हो जाए और सम्यक्त्व आदि की प्राप्ति हो जाए, ऐसा नहीं मान लेना चाहिए। मोक्ष की इच्छा प्रकट हुई हो तो भी जीव के संसार-भ्रमण का काल जब अर्धपुद्गल परावर्तकाल से भी कुछ न्यून रह जाता है, तभी वह जीव ग्रंथिभेद कर सकता है। अर्धपुद्गल परावर्त काल से भी कम काल तक संसार-परिभ्रमण करने वाला जीव ही, अपनी ग्रंथि को भेद सकता है और सम्यग्दर्शनादि को पा सकता है। अतः ग्रंथिभेद होने में काल की परिपक्वता की अपेक्षा भी रहती ही है।

जिस जीव में अपने मोक्ष की इच्छा जन्मे, वह जीव चरमावर्त को प्राप्त है और जो जीव ग्रंथिभेद कर सकता है, वह जीव चरमार्ध पुद्गल परावर्त से भी कम काल में मोक्ष पाने वाला है, ऐसा निश्चित रूप से कहा जा सकता है। परन्तु, ऐसे भी भव्य जीव होते हैं, जो चरमावर्त काल को अथवा चरमार्ध पुद्गल परावर्त काल को तो प्राप्त हों, परन्तु उनमें मोक्ष की इच्छा न जन्मी हो। कदाचित मोक्ष की इच्छा पैदा हुई भी हो तो भी उन्होंने ग्रंथि का भेद न किया हो। ऐसा होने पर भी ये जीव अंततः इस काल के अंतिम भाग में मोक्ष की इच्छा करने वाले, ग्रंथिभेद करने वाले और सम्यग्दर्शनादि गुणों को पाने वाले और इन गुणों के बल से अपने सकल कर्मों को सर्वथा क्षीण कर के मोक्ष को भी प्राप्त करने वाले होते हैं। यह निश्चित बात है। इसलिए किसी जीव में मोक्ष की इच्छा प्रकट न हुई हो तो इतने मात्र से इस जीव को न तो अभव्य कहा जा सकता है और न दुर्भव्य कहा जा सकता है।

जिसमें मोक्ष की इच्छा न प्रकटे वह अभव्य, ऐसा नहीं है; परन्तु कभी भी मोक्ष की इच्छा प्रकट हो सके, ऐसी योग्यता जिस जीव में न हो, वह जीव अभव्य है। मोक्ष की इच्छा प्रकट हो सके, ऐसी योग्यता जिसमें है, वह जीव भव्य स्वभाव वाला कहा जाता है; परन्तु जहां तक वह जीव चरमावर्त्त काल को नहीं पाता, वहां तक उस जीव को दुर्भव्य कहा जाता है। तब तक तो पुरुषार्थ करना ही है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें