आप कितने भाग्यशाली हैं!
जिस नवकार महामंत्र को पाना
सहज नहीं है, आपको जैन कुल में पैदा होने के कारण वह सहज में
प्राप्त हो गया है; इस बात को ध्यान में रखकर
आपको यह सोचना चाहिए कि आप कितने अधिक भाग्यशाली हैं? आप कदाचित सम्यग्दर्शनादि गुणों को न पाए हुए हों, यह संभव है,
परन्तु आप ग्रंथिदेश
पर तो अवश्य पहुंचे हुए हैं! आपके कर्म कदाचित चाहे जितने भारी हों, परन्तु आपका कोई भी कर्म एक कोटाकोटी सागरोपम प्रमाण या
उससे अधिक स्थिति का तो नहीं ही है। आपके कर्मों की स्थिति एक कोटाकोटी सागरोपम से
न्यून ही है। इसके उपरांत नए संचित होने वाले आपके कर्म भी इससे अधिक स्थिति वाले
नहीं हो सकते। यह आपकी जैसी-तैसी साधारण भाग्यशालिता नहीं है। ऐसे आप भाग्यशालियों
को विचार करना चाहिए कि हमारी यह भाग्यशालिता सफल कैसे हो? किसी भी प्रकार की भाग्यशालिता कब सफल कही जा सकती है? स्वयं को प्राप्त भाग्यशालिता द्वारा जीव जब अपनी अधिकाधिक
भाग्यशालिता सम्पादित करता है, तभी यह कहा जा सकता है कि ‘इस जीव ने अपनी भाग्यशालिता को सफल बनाया है, मोक्षगामी बनाया है’।
आप अपनी भाग्यशालिता को सफल
कर रहे हैं या नहीं? और यदि आप अपनी भाग्यशालिता
को सफल कर रहे हैं तो वह कितने अंश में सफल कर रहे हैं? यह सत्य विचार और निर्णय आपको करना चाहिए। परन्तु, ऐसा विचार कब हो सकता है? आपको अपनी इस भाग्यशालिता का सही भान हो तब न? आज आप अपनी भाग्यशालिता किसमें मानते हैं?
पास में बहुत लक्ष्मी
हो, लक्ष्मी का प्रवाह भी आपकी तरफ अथाह रूप से प्रवाहित
हो रहा हो, आपका शरीर निरोगी हो और यथेच्छ खान-पानादि करते हुए
तथा यथेच्छ भटकते हुए भी यदि आपका शरीर निरोगी और बलवान बना रहता हो, आपको पत्नी अच्छी मिली हो और वह आपके अनुकूल बर्ताव करती हो, संतान भी अच्छी हो,
अनुकूल बर्ताव करने
वाली हो और लक्ष्मी की वृद्धि करने वाली हो तो आपको लगता है कि ‘मैं भाग्यशाली हूं।’
लोग आपके प्रति आदरभाव
प्रकट करते हों, आप जहां जाएं वहां आपकी पूछ
होती हो, आपको कोई अप्रिय नहीं बोल सकता हो और आपका सामना
करने वाले को आप बर्बाद कर सकते हों;
संक्षेप में कहें तो, विषयराग जनित और कषायजनित ऐसी जो-जो इच्छाएं आपके मन में
पैदा होती हों और वे इच्छाएं पूरी होती हों तो आपको लगता है कि ‘मैं भाग्यशाली हूं।’
आपको ऐसा विचार नहीं
आता है कि आप जिस-जिस में अपनी भाग्यशालिता मानते हैं, उसमें गाढ मिथ्यादृष्टि भी प्रायः अपनी भाग्यशालिता ही
मानते हैं? सो मिथ्यादृष्टियों की तरह आप भी यदि अपनी
भाग्यशालिता का विचार करते हैं तो आपको जैनकुलादि सामग्री मिली है, इसकी क्या विशेषता रही?
इस तरह की मान्यता तो
दुर्भाग्य को ही जन्म देगी।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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