एक छोटा-सा सूत्र है कि स्वयं को, अपने आपको छोटा मत समझो। अरे! समझा
जाने वाला छोटे से छोटा व्यक्ति भी अजूबा कार्य करके दिखा सकता है। वह व्यक्ति
अपने जीवन में कभी भी आगे नहीं बढ सकता है, जिसने पहले से ही अपने जीवन में मानस बना लिया हो कि
मैं तो यह कार्य कर ही नहीं सकता हूँ। वह व्यक्ति फिर अपने जीवन में विकास नहीं कर
सकता है। विकास उसी व्यक्ति का होता है जो हमेशा अपने द्वार उद्घाटित रखता हो। जो
हमेशा विकास के द्वार खुले रखता है कि मुझे तो निरन्तर विकास करते जाना है।
निरन्तर प्रगति की ओर, उन्नति
की ओर कदम बढाना है, उसी
व्यक्ति के जीवन में अजूबा कार्य हो सकता है।
“हूँ कौन छूँ क्यां थी थयो, शूँ स्वरूप छे मारूँ खरूँ?
कौना सम्बन्धी वलगणा ये राखुँ के ए परिहरूँ...।”
हमारा चिन्तन सिर्फ इतना-सा हो कि मैं कौन हूँ? अगर हम अपनी मूल सत्ता की पहचान कर
लें तो वह ऊँचाई हमसे दूर नहीं है। हम उस उच्च शिखर तक भी पहुँच सकते हैं। जिस
क्षण यह पता लग जाए कि मैं कौन हूँ, उस क्षण परिवेश बदल जाएगा। सारी परिस्थितियाँ बदल जाएगी। फिर हमें यह ज्ञात हो
जाएगा कि मैं अनन्त शक्ति का धारक हूँ।
जिस क्षण आपको अपनी अनन्त शक्ति का ज्ञान हो जाएगा, उस क्षण से आप दूसरों के नचाए
अनुसार नहीं नाचोगे। लेकिन, अभी
आपने अपनी आत्म-शक्ति को नहीं पहचाना है, इसलिए आप स्वयं के मालिक नहीं हैं। दूसरे आपके मालिक बने हुए हैं। पर भाव, पर पदार्थ आपके मालिक बने हुए हैं।
उनके कहे अनुसार आप चलते हैं। जिस क्षण आप यह पहचान कर लेंगे कि मैं कौन हूँ? उस क्षण आपकी जीवन शैली बदल जाएगी, जीवन जीने का ढंग बदल जाएगा। पर
पदार्थों के प्रति, पर
भावों के प्रति आप सतर्क हो जाएंगे।
लेकिन, यह जानना, स्वयं
का बोध करना बात करने जैसा सरल नहीं है, स्व का अनुभवगम्य ज्ञान हो पाना बडा ही मुश्किल है। कितनी ही जिन्दगियाँ खप गई, कितने ही वर्ष बीत गए, लेकिन अभी तक हमें यह बोध नहीं हो
पाया कि मैं कौन हूँ? मेरा
वास्तविक स्वरूप क्या है? और
इसी बोध के अभाव में हमें अनन्त काल हो गए हैं इस संसार-चक्र में भटकते-भटकते।
जिस क्षण भी हमें स्वयं की चेतना (आत्मा) का बोध हो
जाएगा, हमारा भटकाव रुक जाएगा।
हमारी आत्मा अनन्त शक्ति सम्पन्न है। चेतना की शक्ति से बढकर और कोई शक्ति इस
संसार में है ही नहीं। आत्मा की शक्ति अनन्त गुना है। आत्मबल तो दूर आपके भीतर
थोडा-सा मनोबल भी अगर आ जाए तो फिर आप अपने आपको हीन नहीं मानेंगे। स्वयं को किसी
से कम नहीं मानेंगे।-आचार्य श्री
विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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