बुधवार, 20 अगस्त 2014

आपके धर्म-मित्र हैं?


आपने कोई सच्चा परामर्श देने वाला भी रखा है? आप जब प्रतिकूल संयोगों में व्यथित हो रहे हों, तब आपके कान में आकर कोई इस प्रकार कहने वाला है कि यह दशा आई है तो यह तुम्हारे पापोदय को सूचित करती है। रुदन करते हुए या हंसते हुए, इसे भोगना ही पडेगा। पाप से निष्पन्न परिणाम से निपटने के लिए अधिक पाप में लिप्त होने का विचार न करो। गई हुई लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिए कूट-कपट-झूठ आदि के विचार छोडो और प्राप्त हुई स्थिति को समभाव से सहन करो।

इस समय ऐसा कहने वाला भी चाहिए, ‘देखो, लक्ष्मी थी, तब भोग में उदार बने और धर्म में कृपण बने। लक्ष्मी द्वारा जो साधने योग्य था, उसको साधा नहीं, इसका पश्चाताप करो और अब है इसमें से सदुपयोग करो।ऐसी बात कान में आकर निर्भीकता से कहे, ऐसे धर्म-मित्र आपने रखे हैं?

आज के सेठियों को तो प्रायः हां में हां कहने वाले और सलाम करने वाले चाहिए। आप जो कुछ करते हैं, वह बिलकुल सही करते हैं। आपकी बुद्धि अनुभवपूर्ण है, आप में गजब की समझदारी है, आपके सामने कौन टिक सकता है?’ ऐसे-ऐसे वाक्य आज के सेठ लोगों को प्रीतिकर होते हैं। आज के कितने ही धन और काम के गुलाम सेठ देव-गुरु-धर्म की निन्दा करें तो भी उनकी हां में हां मिलाए ऐसे बहुत हैं। ऐसी स्थिति में अर्थ और काम की सामग्री में पागल बने हुओं को, इस पागलपन के योग से आने वाले विपरीत परिणाम का खयाल कराने वाले कितने हैं? बहुत ही थोडे हैं।

आप जब अर्थ और काम की सामग्री में भान भूल गए हों, पौद्गलिक साधनों में पागल बन गए हों, मिली हुई सामग्री केवल पुद्गल-सेवा में खर्च रहे हों, तब ऐसा परामर्श देने वाला है कि यह नाश का रास्ता है। जिस सामग्री के योग से मोक्ष मार्ग की उत्तम प्रकार से आराधना कर सकते हैं, उस सामग्री का दुरुपयोग करके तुम दुर्गति की ओर घसीटे जा रहे हो। जो मिला है, उसका सदुपयोग करो। जिससे मिला है, उससे द्रोह न करो।ऐसा परामर्श देने वाला आपने किसी को रखा है?

सुसाधु आपको कहते हैं कि संसार के जीवन का स्वाद तो चखा, अब संयम जीवन के स्वाद को चख कर देखो। राग का अनुभव तो किया, किन्तु त्याग का अनुभव भी करके तो देखो। पौद्गलिक लालसा बुरी है, दुःखदायी है, ऐसा लगता हो तो लालसा को काटने का प्रयत्न करके देखो। श्री जिनेश्वर देव के सेवक को पौद्गलिक लालसा दुःखदायी ही लगती है। पौद्गलिक सामग्री को जो छोड न सके, उसे छोडकर साधु न बन सके तो भी उसके हृदय में पुद्गल की संगति डंक मारती रहनी चाहिए। जल्दी या देर से, ऐसी आत्मा का निस्तार जरूर होता है। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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