आप सब प्रतिदिन भगवान् की, श्री जिनेश्वर देव की पूजा करते ही होंगे? प्रतिदिन
त्रिकाल पूजा करते हैं या एक काल पूजा करते हैं? प्रतिदिन त्रिकाल पूजा
नहीं कर सकते,
अतः एक काल पूजा करते हों, ऐसा हो सकता है, परन्तु
पूजा किए बिना तो नहीं रहते हैं न? भगवान् श्री अरिहंत देव ऐसे
उपकारी हैं कि यदि उन तारकों का उपकार ध्यान में आ जाए, तो
उन तारकों को कभी नहीं भुलाया जा सकता, कभी हृदय से दूर नहीं किया जा
सकता। आपको भगवान् की पूजा करते समय क्या याद आता है?
‘वे
वीतरागी थे, इत्यादि?’
वीतरागी तो वे थे ही,
परन्तु, हम उन तारक की पूजा क्यों करें? हमें
ऐसी क्या आवश्यकता पड गई कि हम अन्य किसी देव की पूजा नहीं करते और इन देव की पूजा
किए बिना रह नहीं सकते?
यदि आप में तत्त्वज्ञान होता तो आप कह सकते थे कि ‘संसार
में भटकते-भटकते अनंत काल हो गया। उसमें उपकारी भी बहुत मिले, परन्तु
सब उपकारियों की अपेक्षा तीर्थंकर परमात्मा का उपकार सर्वाधिक है। इन परमतारक जैसा
कोई उपकारी नहीं। क्योंकि,
उन्होंने हमें अपने वास्तविक स्वरूप का भान कराया और हम
हमारे स्वरूप को कैसे प्रकट करें, इसका मार्ग भी बताया। कर्म के योग से हम
संसार में भटकते रहते हैं;
कर्म के योग से संसार में भटकते हुए अनंतकाल बीत चुका है।
ये तीर्थंकर परमात्मा मिले और हमारा अनंतकाल का यह दुःख टल गया। क्योंकि हम उनके
बताए मार्ग पर चलकर इस जन्म-मरण के चक्र को भेद सकते हैं और अक्षय सुख, अक्षय
आनंद को प्राप्त कर सकते हैं।’ भगवान् की पूजा करते समय ऐसा कोई विचार
कभी आपको आता है?
भगवान् श्री जिनेश्वर देव मोक्ष मार्ग के दाता हैं, ऐसा
आपने कभी सुना है या नहीं?
आपको ऐसा विचार कभी आया कि ऐसे समर्थ और सर्वज्ञ भगवान् ने
जगत् के जीवों के कल्याण के लिए अन्य कोई मार्ग न बताते हुए एक मात्र मोक्ष मार्ग
ही क्यों बताया?
ऐसे वीतराग और सर्वज्ञ भगवान् ने जब जीवों के कल्याण के लिए
एक मात्र मोक्ष मार्ग ही बताया, तो इतना तो निश्चित ही है कि ‘मोक्षमार्ग
के सिवाय अन्य किसी मार्ग से जीव का वास्तविक कल्याण नहीं हो सकता।’ यदि
आपको ऐसा विचार भी आया होता तो भी आपको तत्त्वों के स्वरूप को समझने की इच्छा होती
और इसके लिए आपने प्रयत्न भी किया होता।
तत्त्वज्ञान वाला व्यक्ति भगवान और उनके मार्ग को भलीभाँति पहचान सकता है। जो
जिसको पहचानता ही नहीं,
वह उससे समुचित लाभ कैसे उठा सकता है? जो
तत्त्व को नहीं जानता,
उसके हाथ में सत्य आ गया हो तो भी जो फल मिलना चाहिए, वह
फल उसे नहीं मिल पाता।-आचार्य श्री
विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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