व्यवहार राशि में आने के बाद जीव को चार गतियों में भटकना पडता है। उनमें से
महापुण्य के योग से आपको ऐसी अच्छी सामग्री के साथ यह मनुष्य भव मिला है, यह
बात तो आप मानते हैं न?
अब आपको ऐसा विचार आता है कि ‘मेरा
यह मनुष्य भव शाश्वत नहीं है। मेरे हाथ से कुछ ऐसा अच्छा पुण्य हो गया, जिसके
कारण मैं इस भव में आ गया। परन्तु, यहां से जाए बिना छुटकारा
नहीं।’ ऐसा विचार तो आपको आ गया है न?
अब ज्ञानी जो कहते हैं कि ‘यहां से कहां जाना, यह
हमारे हाथ की बात है’,
तो हम इसके प्रति उदासीन या असावधान रहें तो क्या यह हमारे
हित में है? जाना है,
यह निश्चित है और प्रयास करें या धारें तो अच्छी गति में जा
सकते हैं, यह भी संभव है। तो यह जानकर हममें हिम्मत आनी चाहिए न?
भवितव्यता कैसी है,
यह आप जानते हैं? यदि नहीं तो भवितव्यता अच्छी
नहीं है, ऐसी कल्पना आपको कैसे आई? हमें तो यह समझना चाहिए कि हमारी
भवितव्यता अच्छी ही है। क्योंकि, हमें श्री वीतराग देव, निर्ग्रंथ
गुरु और श्री जिनेश्वर कथित धर्म और धर्म की सामग्री मिली है।
हम में तो ऐसा उत्साह पैदा होना चाहिए कि ‘मेरी भवितव्यता बहुत अच्छी
लगती है, क्योंकि यह सब श्रेष्ठ से श्रेष्ठ देव-गुरु-धर्म की सामग्री मुझे मिल गई है और
इसमें से मोक्षपर्याय को प्रकट करने के लिए पुरुषार्थ करने का आग्रह करना चाहिए।
ऐसे देव-गुरु-धर्म मिलने के बाद किसकी ताकत है जो हमें दुर्गति में ले जाए? हम
ही इन देव-गुरु-धर्म को हृदय में न रखें और दुर्गति में जाएं तो यह बात दूसरी है।’
कोई पूछे कि ‘यहां से मर कर कहां जाओगे? तो हमें कहना चाहिए कि ‘निश्चित
रूप से तो क्या कहा जाए?
क्योंकि, परिणामों का कोई पता नहीं चलता, परन्तु
हमारा प्रयत्न तो सद्गति के लिए ही है। आयुष्य के बंध के समय कैसे परिणाम थे या
होंगे, यह तो ज्ञानी जानें,
परन्तु हम तो परिणामों को इस प्रकार रखते हैं कि दुर्गति न
हो, सद्गति अवश्य हो और जहां जाएं, वहां देव-गुरु-धर्म को न
भूलें।
जैन कुल में उत्पन्न व्यक्ति के देव भी सम्यक्त्व वाले, गुरु
भी सम्यक्त्व वाले और धर्म भी सम्यक्त्व वाला होना चाहिए। अतः जो कोई ऐसे देव-गुरु-धर्म
की निश्रा में ही चलता हो,
उसमें मिथ्यात्व के लिए अवकाश नहीं होता। वह अपनी सद्गति के
द्वार खोल ही देता है। यदि आप सुदेव, सुगुरु और सुधर्म की निश्रा
में चलेंगे तो आप में सम्यक्त्व प्रकट हुए बिना नहीं रह सकता और सम्यक्त्व प्रकट
हो गया तो आपकी भवितव्यता तो अच्छी ही है, इसमें कोई संशय हो ही नहीं
सकता।-आचार्य श्री
विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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