विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 10 अक्टुम्बर, 2014
पर विशेष
नहीं मिल पाता मानसिक रोगियों को समुचित उपचार
हमारे
देश में फेमिली फिजियंस के पास आने वाले रोगियों में 25 फीसदी
रोगी मानसिक रोगों से पीड़ित होते हैं और वे उनसे परामर्श व उपचार लेते हैं, जबकि उनकी पढाई के दौरान उन्हें मनोविज्ञान नहीं सिखाया जाता, जिससे उनकी मनोविज्ञान के संबंध में पूरी समझ नहीं होती, फिर भी वे रोगी को किसी मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक के पास भेजने की बजाए
स्वयं दवाएं लिख देते हैं, जबकि मनोरोग से पीड़ित व्यक्ति के रोग की
तह तक जाने का न तो उनके पास पर्याप्त समय होता है और न ही समझ। उनके पास न तो
मनोवैज्ञानिक जांच की सुविधाएं होती है और न ही काउंसलिंग का समय। वे औसतन पांच
मिनिट में रोगी को दवाओं का पर्चा लिख कर रवाना कर देते हैं।
इस
प्रकार के उपचार से पर्याप्त राहत नहीं मिल पाती। कई बार मर्ज बढ जाता है, नींद की गोलियों की लत लग जाती है, दवाओं के साइड इफेक्ट्स
हो जाते हैं। मरीज की हालत और बिगड जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस पर चिंता
जाहिर करते हुए सभी गरीब एवं विकासशील देशों में मानसिक स्वास्थ्य सुविधाएं बढाने
की गुहार की है।
समूचे
विश्व में 60 करोड से ज्यादा लोग किसी न किसी मानसिक
विकृति से प्रभावित हैं। इनमें से 90 फीसदी रोगी गरीब एवं
विकासशील देशों में हैं, लेकिन 50 फीसदी
रोगियों की सही उपचार तक पहुंच ही नहीं है। इनमें से 35 करोड़ से अधिक लोग अवसाद से ग्रसित हैं। हमारे देश में ही 12 करोड 50 लाख
से ज्यादा लोग किसी न किसी प्रकार की मानसिक विकृति से पीड़ित हैं, लेकिन देश के कुल स्वास्थ्य बजट का मात्र 0.83 फीसदी हिस्सा ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवंटित होता है, जबकि अन्य शारीरिक बीमारियों की तुलना में मानसिक बीमारियां बहुत ज्यादा है।
यहां तक कि टीबी व केंसर के कुल रोगियों से भी मानसिक रोगियों की संख्या अधिक है
और 14 से 44 वर्ष का आयु वर्ग जो उत्पादकता की दृष्टि
से सबसे महत्वपूर्ण आयु वर्ग है, वही मानसिक अस्वस्थता का सबसे ज्यादा
शिकार है।
सबसे
गंभीर मानसिक रोग सिजोफ्रेनिया के विश्व में ढाई करोड मरीज हैं, उनमें से अकेले भारत में ही एक करोड लोग इस मर्ज से पीड़ित हैं। इसी प्रकार
मनोग्रस्ति बाध्यता विकृति (ओसीडी) के भारत में एक करोड बीस लाख रोगी हैं। इसी
प्रकार की हालत अन्य मानसिक विकृतियों की है।
लेकिन, हमारे देश में विकसित राष्ट्रों की तरह अलग से मानसिक स्वास्थ्य के लिए
नीतियां और कार्यक्रम नहीं हैं, जबकि एचआईवी/एड्स, मातृ
एवं शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रमों की तरह ही मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने, कार्यक्रम बनाने, जागरूकता लाने और सामुदायिक एवं प्राथमिक
स्वास्थ्य केन्द्रों के स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य के लिए व्यवस्थाएं जरूरी हैं।
मानसिक स्वास्थ्य के लिए सरकार की सुविधाएं
- भारत की कुल आबादी इस समय लगभग 127 करोड है। देश में ढाई लाख की आबादी पर एक मनोचिकित्सक, 50 लाख की आबादी पर एक मनोवैज्ञानिक, एक लाख की आबादी पर मनोरोगियों के लिए अस्पतालों में 25 बेड, 25 लाख की आबादी पर दो साइकिट्रिक नर्स, 50 लाख की आबादी पर एक सामाजिक कार्यकर्ता, 12 करोड 50 लाख लोग किसी न किसी मानसिक बीमारी से ग्रस्त। इनमें से 5 करोड लोग गंभीर मानसिक विकृतियों के शिकार हैं.
- राजस्थान की कुल आबादी इस समय 6 करोड से अधिक है। यहाँ 12 लाख की आबादी पर एक मनोचिकित्सक, 2 करोड की आबादी पर एक मनोवैज्ञानिक, दो लाख की आबादी पर मनोरोगियों के लिए अस्पतालों में एक बेड, कोई साइकिट्रिक नर्स नहीं, 3 करोड की आबादी पर एक सामाजिक कार्यकर्ता, 90 लाख लोग किसी न किसी मानसिक बीमारी से ग्रस्त। इनमें से 25 लाख लोग गंभीर मानसिक विकृतियों के शिकार हैं.बिगडते मानसिक स्वास्थ्य के कारण
- पारिवारिक इतिहास
- जन्मजात मानसिक विकृति
- तेजी से बढ रहा शहरीकरण
- संयुक्त परिवारों का विघटन
- युवाओं का बेहतर रोजगार की तलाश में पलायन और घर-परिवार से दूरी
- गरीबी
- अशिक्षा
- भेदभाव, प्रताडनाएं
- औद्यौगिकीकरण
- मानसिक रोगियों की उपेक्षा
- आर्थिक एवं सामाजिक पुनर्वास की समुचित व्यवस्थाओं का अभाव
- प्रतिस्पर्द्धा
- भौतिक संसाधनों और विलासिता के लिए अंधी दौड
- खान-पान में असंयम
- मोटापा
- तलाक
- पारिवारिक हिंसा
- किसी और बिमारी से लम्बे समय से ग्रसित होने के कारण आई निराशा
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