आजकल कई लोग सर्व धर्म समभाव की बातें कर रहे हैं। आज जिस रीति से और जिस अर्थ
में सर्व धर्म समभाव की बातें हो रही है, उन्हें देखने से ऐसा लगता है
कि ऐसी बातें करने वालों को वस्तुतः धर्म की कोई दरकार ही नहीं है। कई लोग सर्व
धर्म समभाव के नाम पर अपनी रोटियां सेंकना चाहते हैं, समाज
व धर्म के नेता बनना चाहते हैं। वस्तुतः तो उन्हें धर्म की पूरी जानकारी ही नहीं
होती, उन्हें तत्त्वातत्त्व की कोई समझ ही नहीं होती। वे तो बस इस आड में अपना उल्लू
सीधा करना चाहते हैं। इससे धर्म की हानि ही होती है। ‘हम
धर्म को नहीं समझ सकते,
धर्म क्या है और अधर्म क्या है, इसका
निर्णय करने योग्य ज्ञान हम में नहीं है, सब कहते हैं कि हमारा धर्म
भगवान द्वारा प्ररूपित है,
इसलिए हमें किसी धर्म का आग्रही भी नहीं बनना चाहिए और किसी
धर्म को मिथ्या भी नहीं मानना चाहिए’, इस प्रकार की मनोवृत्ति, एक
अलग ही वस्तु है।
ऐसी वृत्ति वाले मनुष्यों का यदि मति-विकास हो जाए और उन्हें तत्त्वार्थ का
निर्णय करने का अवसर मिल जाए, तो उन्हें ऐसा कोई आग्रह नहीं होता कि सब
धर्मों को सत्य ही मानना। वस्तुतः धर्म क्या है और धर्म के नाम से पहचाने जाने
वाले मतों में अधर्म क्या है, इस विषय का निर्णय करने की वृत्ति न हो, ऐसा
भी हो सकता है। और हम में ऐसी बुद्धि आदि नहीं है, ऐसा लगता हो अर्थात्
सर्व दर्शन सत्य हैं और कोई दर्शन झूठा नहीं है, ऐसा कोई मानता हो, यह
भी संभव है, परन्तु उसका उसे ऐसा आग्रह नहीं होता कि समझाने वाला मिले तो भी समझने से
इनकार करे।
सर्व धर्म समभाव के नाम से आज जो बातें करते हैं, उनके
हृदय में ‘मोक्ष के लिए धर्म की आवश्यकता है’, यह बात हो, ऐसा
प्रतीत नहीं होता। कोई भी धर्म मोक्ष की बात करता है तो ऐसे लोग कहते हैं कि ‘यह
बात हमारे पास मत कीजिए। हमें तो यह करना है कि विभिन्न धर्मवाले परस्पर लडें
नहीं।’ इस प्रकार कहकर वे यह प्रचार करना चाहते हैं कि ‘धर्म
झगडे का मूल है।’
साथ ही उन्हें सर्व धर्म समभाव की अपनी मान्यता का ऐसा
आग्रह भी होता है कि उससे विपरीत बात सुनने-समझने और स्वीकार करने की वृत्ति उनमें
नहीं होती।
आजकल कतिपय जैन भी सर्व धर्म समभाव की बातें करने लगे हैं। परन्तु, जैन
कुल में जन्म लेने मात्र से जैन कहलाने वाले और स्वयं को प्राप्त सामग्री की कीमत
नहीं समझने वाले ऐसी भूल करें, इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। इसलिए
तो कहता हूं कि आप अज्ञानी रह गए तो भी आपकी संतान अज्ञानी न रहे, इसके
लिए योग्य प्रयत्न करना आवश्यक है। सर्व धर्म समभाव की बात, आज
एक तरह का फैशन बन गया है,
इसका धर्म और धर्माचरण से कोई सरोकार नहीं है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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