पुण्यशाली मनुष्यों को अपने सिर में केवल एक श्वेत बाल
देखने से ही कितना विचार उत्पन्न हो जाता था कि वे सबकुछ छोडकर आत्म-कल्याण के
मार्ग पर निकल पडते थे। क्या आज हमारे समक्ष ऐसे व्यक्ति नहीं हैं, जिनके सिर पर एक भी काला बाल दृष्टिगोचर नहीं होता? ऐसे
अनेक व्यक्ति हमारे समक्ष हैं, जिनका पूरा सिर सफेद बालों से
घिरा हुआ है,
फिर भी हम उनकी भावनाओं में किसी भी प्रकार का सुन्दर
परिवर्तन नहीं देख पा रहे हैं। कारण क्या है? तनिक
सोचो। वर्तमान भयानक वातावरण ने भी धर्म-भावना पर कितना क्रूर प्रहार किया है, इस पर भी विचार करो। स्पष्ट है कि धर्मात्मा कुलों में से उत्तम प्रकार के
आचरण नष्ट हो गए हैं, उसका ही यह परिणाम है। आज विचारों को उधार
लेकर विचारक बने हुए मनुष्यों ने शुद्ध आचारों की मर्यादा के समक्ष काला वातावरण
उपस्थित करके निर्घृण परिस्थिति उत्पन्न की है, अन्यथा
आर्यदेश,
आर्यजाति और आर्यकुल में उत्पन्न मनुष्यों में यह निर्घृण
स्थिति उत्पन्न होनी असंभव थी। आज तो सफेद को डाई कराकर काला करने और जवान दिखने
की होड मची है।-सूरिरामचन्द्र
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