वर्तमान समय में विद्यार्थी-शिक्षक का जरा भी संबंध नहीं है। क्लास लेने जितना
संबंध। कोई शिक्षक जरा होशियार और कडक हो तो ठीक, नहीं तो शिक्षक आए और बोलकर जाए, विद्यार्थियों
में जिसे गरज हो वे सुनें, बाकी के खेलें या नींद निकालें; ऐसी स्थिति है, इनमें है कोई संबंध? आज तो विद्या है कहां? मूर्खता ही है; अन्यथा तो विद्यार्थी कभी शिक्षक के सामने छाती चौडी कर चलते हैं? विद्या हो तो इन्हें कुछ भान नहीं हो? इनमें
नम्रता, विनय, लघुता नहीं आए? शिक्षक भी अधिकांशतः नौकरी की
खानापूर्ति के लिए आते हैं। ये भी यदि वांचन में अटकें तो शैतान विद्यार्थी तुरन्त
शिक्षक की भी खिल्ली उडाए; इसलिए शिक्षक भी घर से चार बार
पुस्तक पढकर आते हैं; और यह तैयार किया हुआ खोखला ज्ञान
तडाकेबंद बोल जाते हैं। घण्टे-सवाघण्टे दिशासूचक लेक्चर कर रवाना हो जाते हैं। विद्यार्थी
भी ऐसे कि जचे तो पढें नहीं तो हुररे...... करते देर नहीं। शिक्षक को भी लगता है कि
ऐसे बंदरों को किस प्रकार पढाया जाए? उसे भी
बराबर टिपटॉप बनकर ही आना पडता है।-सूरिरामचन्द्र
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