स्वर्ग एवं मोक्ष प्राप्त कराने वाले मानव-जन्म को पाकर भी जो मनुष्य नरक
प्राप्त कराने वाले कर्मों में उद्यमशील रहते हैं, वे सचमुच खेद उत्पन्न
कराने वाले हैं,
क्योंकि ऐसे मनुष्यों को देखने से हितैषी सज्जनों को वास्तव
में खेद होता है। जिस मानव जन्म को प्राप्त करने के लिए अनुत्तर देवता भी
प्रयत्नशील रहते हैं,
उस मानव जीवन को पाप कार्यों में नष्ट कर डालना पुण्यशाली
मनुष्यों का कार्य नहीं है,
अपितु पापियों का ही कार्य है। जीवन को हर वक्त समस्याओं, निराशाओं
और नासमझी के साथ जीना जीना नहीं है, मात्र जीवन का बोझ ढोना ही
है। ऐसे व्यक्ति बहुमूल्य मानव जन्म को नष्ट कर अक्षय सुख-शान्ति-आनंद से वंचित ही
रहते हैं।
अतः पुण्योदय से प्राप्त मानव जन्म को सफल एवं सार्थक करने के उपाय करने
चाहिए। उसे सार्थक करने के लिए मुक्ति का लक्ष्य बनाकर अर्थ एवं काम की आसक्ति से
बचने, भाव सहित अनुकम्पा-दान एवं सुपात्र-दान देने, शील-सदाचार का सेवक
बनने, तृष्णा का नाश करने वाले तप में रत रहने और अपने साथ दूसरों की कल्याण-कामना
करने, मैत्री आदि चार एवं अनित्यादि बारह तथा अन्य भावनाओं का सच्चे हृदय से उपासक
बनने के प्रयत्न करने चाहिए। तभी मानव-जन्म की सार्थकता है।-सूरिरामचन्द्र
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