शासन के सन्मुख आक्रमण का प्रसंग आए, ऐसे समय में भी स्वयं की
शक्ति को गोपित करने वाले,
मौन रहकर मान-पान को सुरक्षित रखने वाले और स्वयं की शिथिल
दशा को छुपाने का प्रयत्न करने वाले ऐसा भी कहते सुने जाते हैं कि ‘भगवान
कह गए हैं कि पाखण्डी होने को हैं, वे होंगे और शासन तो 21 हजार
वर्ष तक चलने वाला ही है,
फिर यह तूफान क्यों? नाहक की टीका-टिप्पणी क्यों? आक्षेप
क्यों? बस, नवकार गिनना चाहिए।’
इस प्रकार आज कितने ही साधु और श्रावक भी कहते हैं। उनसे
पूछा जाए कि श्री आगम ग्रंथों में क्या है? परमोपकरी पूर्वाचार्यों
द्वारा रचित ग्रंथों में क्या है? उन्मार्ग का उन्मूलन कितना किया गया है? सच्चे
को सच्चा और झूठे को झूठा जाना है या नहीं? उन्मार्ग के खण्डन के लिए तो
लाखों श्लोक परमोपकारियों ने लिखे हैं।
मिथ्यावाद का गणधर देवों ने पूर्ण रूप से विरोध किया है। सच्ची स्थिति इस
प्रकार होने पर भी आज रक्षण के प्रश्न करने के बदले शान्ति रखकर नवकार गिनने के
लिए बोलने वाले मूर्ख,
शान्ति की उपासना में लगे हैं, यह
दुःख की बात है। आक्रमण के प्रसंग पर तो गलत शान्ति की बातें करने वाले जैन शासन
के घातक हैं। गलत को गलत तरीके से मानना, सच्चे की सेवा करना, सच्चे
के सेवक बनकर दृढ रहना और सत्य पर होने वाले हमलों को निष्फल बनाना, यही
सच्ची शान्ति का मार्ग है और सच्ची शान्ति का यह मार्ग कल्याण-कामियों द्वारा
सेवित होना चाहिए।-सूरिरामचन्द्र
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