कुछ लोग अपनी अज्ञानता के कारण तो कुछ षडयंत्र के तहत ऐसा दुष्प्रचार करते हैं
कि ‘क्या करे?
बिचारे दुःखी थे, इसलिए दीक्षा ली।’ ऐसा
बोलने वाला अपनी आँखों के सामने हजारों दुःखियों को देखता है, उन
सबको वैराग्य नहीं आता। फिर भी इस प्रकार की बात उसके मुँह से कैसे निकलती है? ऐसी
बातें करने वाले खुद बाजार में रोटी के टुकडों के लिए घूमने वाले होते हैं, गधा
मजदूरी करके पाप कर्म से पेट भरने वाले होते हैं। पेट भरने के लिए दीक्षा नहीं ली
जाती। जो ऐसा बोलते हैं कि बेचारा दुःखी था, पेट भरने का साधन नहीं था, इसलिए
दीक्षा ले ली,
वे वास्तव में भयंकर पापात्मा हैं। उन लोगों को अपना पेट
भरने के लिए चाहे जैसे निर्दयी काम करते हुए भी शर्म नहीं आती है। ऐसा कहने वाले
पापात्माओं को भागवती दीक्षा या धर्म के ऊपर तनिक भी प्रेम नहीं होता है। मांग कर
लाना और मिले उससे पेट भरना। मिले तो खाना, न मिले तो पूरी मन की
प्रफुल्लता से तप करना और संयम पालना, यह कोई सहज वस्तु नहीं है। यदि
यह सहज होता तो बदमाशी करके पेट भरने वाले उन लोगों ने कभी का वेश पहनकर यह
कपटपूर्ण प्रयत्न किया ही होता।-सूरिरामचन्द्र
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