आज समाज में संस्कारों की कितनी कमी होती जा रही है? आजकल
के माता-पिता को फुर्सत नहीं है कि वे आधा घंटा भी अपने बच्चों के पास बैठकर
उन्हें धर्म की शिक्षा दें,
समझाएं, अच्छे संस्कार दें। वह माता शत्रु के समान
है, जिसने अपने बालक को संस्कारित नहीं किया। वह पिता वेरी के समान है, जिसने
अपने बच्चे को संस्कार नहीं दिए। आजकल के माता-पिता तो अपने बच्चों को अच्छी
शिक्षा के नाम पर कान्वेन्ट में डाल देते हैं। आप सोचते हैं कि कान्वेन्ट में पढने
जाएगा तो हमारा बच्चा इन्टेलीजेन्ट (चतुर) बनेगा। पढ-लिखकर होशियार बन जाएगा और
बडा आदमी बन जाएगा। लेकिन,
वहां जो शिक्षा परोसी जाती है, उसमें
आत्मा कहां है?
वहां तो जहर ही जहर है। संसार में बिगडने, भटकने
के साधन बढते जा रहे हैं और धार्मिक संस्कारों के साधन घटते जा रहे हैं। ये सब
आपने विचार नहीं किया। आप उसे कितना ही सम्हाल कर रखिए, लेकिन
जब बचपन से ही बच्चा ऐसे माहौल में पलता है, पढता है, जो
सीखता है, उसमें वे संस्कार आएंगे ही।
आपने अपने जीवन में जो संस्कार प्राप्त किए हैं, कई जन्म-जन्मांतरों के
संस्कार, बचपन के संस्कार,
वात्सल्य के संस्कार ही आगे चलकर विकसित, पुष्पित, पल्लवित
होते हैं और उन संस्कारों के अनुसार जीवन क्रम चलता रहता है। आपको बचपन से ही ये
संस्कार मिले हैं कि जीवन में अधिक से अधिक पैसा कमाना। अधिक से अधिक पद-प्रतिष्ठा
प्राप्त करना और अधिक से अधिक ऐशो-आराम की सुविधाएँ जुटाना। ऐसी स्थिति में आप
अधिक से अधिक अपने शरीर से,
वस्तुओं से जुडे रहते हैं। अधिक से अधिक अपने परिवार से
जुडे रहते हैं। अपने शरीर पर ही आपका ध्यान केन्द्रित हो जाता है। अपने परिवार के
सदस्यों पर आपका ध्यान केन्द्रित हो जाता है। इससे अधिक कुछ हुआ, तो
आप समाज से जुड जाते हैं। किन्तु, आपके चैतन्य, आपकी
आत्मा के प्रति आपका ध्यान नहीं जाता है।
आत्मा को आपने पूरी तरह भुला दिया है। इसे क्या आप बुद्धिमानी कहेंगे कि आप
नाशवान पर-पदार्थों में ही लिप्त हैं? ऐसा कर के आप स्वयं के शत्रु
बन रहे हैं कि नहीं?
स्वयं का बोध आपने किया नहीं है और बिना ज्ञान के आचरण करते
चले जा रहे हैं,
तो आपका यह आचरण कैसा होगा? पहले ज्ञान प्राप्त
करो, उसके बाद आचरण करो। अगर तुम्हें ज्ञान ही नहीं है कि अमुक पदार्थ में जीव है, पानी
में जीव है, तो उन जीवों के प्रति दया कैसे जागेगी? करुणा कैसे जागेगी? इसलिए
जीवन में क्रिया करने से पहले विवेक का होना, ज्ञान का होना जरूरी है।-सूरिरामचन्द्र
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