जैन कुल में जो जन्मा हो और
जिसमें जैन कुल के संस्कार हों, उसमें वैराग्य न हो, ऐसा नहीं हो सकता। जैन कुल में तो माता स्तनपान के साथ ही
वैराग्य का पान कराती है, ऐसा कहा जा सकता है। क्योंकि, जैनकुल की प्रत्येक बात में प्रायः वैराग्य का प्रभाव होता
है। खाने की बात हो या पीने की बात हो,
लाभ की बात हो या हानि
की बात हो, भोगोपभोग की बात हो या त्याग-तप की बात हो, जन्म की बात हो या मरण की बात हो, जैनकुल में होने वाली प्रायः प्रत्येक बात में वैराग्य के
छींटे तो होते ही हैं। जैन जो बोलते हैं,
उससे समझदार व्यक्ति
समझ सकता है कि वैराग्य का प्रभाव है। आज यह अनुभव विरल होता जा रहा है, यह दुर्भाग्य है। अन्यथा पुण्य, पाप, संसार की दुःखमयता, जीवन की क्षणभंगुरता,
वस्तुओं की नश्वरता, आत्मा की गति,
मोक्ष आदि की बातों का
प्रभाव प्रायः जैन की प्रत्येक बात में होता है। क्योंकि उसके हृदय में यही (वैराग्य)
होता है। अच्छा या बुरा जो कुछ भी होता है,
उसके विषय में अथवा
कुछ नया करने का अवसर आए, उस समय जो बात होती है, उसमें सच्चे जैन जो बात करने वाले होते हैं, तो वैराग्य के छींटे उसमें न हों, यह नहीं हो सकता। संसार का सुख मिलने की स्थिति में, ‘संसार के सुख में और संसार के सुख की सामग्री में बहुत
आसक्त नहीं होना चाहिए’, ऐसी बात होती है। जब शोक की
स्थिति होती है, तब शोक की अपेक्षा उसकी
नश्वरता आदि की बात होती है। यह वैराग्य के घर की बात है न? -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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