सोमवार, 19 अगस्त 2013

साधु महाराज किस क्रम से धर्म बताएं?


साधु जिनेश्वर देव कथित धर्म को बताने लगे तो उसमें सर्वप्रथम सर्वविरति ही बताए। अधर्म से सर्वथा छूटना हो और एकांत धर्ममय आचरण करना हो तो सर्वविरति चाहिए ही। अतः प्रथम सर्वविरति का उपदेश करे। धर्म को जानने के लिए आए हुए जीव को यह बहुत रुचिकर लगे, परन्तु उस समय वह सर्वविरति धर्म स्वीकार करने में समर्थ नहीं हो और आग्रह करे कि भगवन! सचमुच धर्म तो यही है। यही धर्म संसार से शीघ्र मुक्त कर देने वाला है। परन्तु, इस धर्म को पालने का सामर्थ्य मुझ में अभी फिलहाल प्रकट नहीं हुआ है। अतः ऐसा धर्म बताने की कृपा करें, जिसको करते-करते मुझ में सर्वविरति धर्म को पालने का सामर्थ्य प्रकट हो सके।ऐसे जीव के समक्ष साधु देशविरति धर्म का प्रतिपादन करे। यह सुनकर जीव यदि देशविरति धर्म को स्वीकार करने हेतु उत्साहित बने तो वह देशविरति धर्म को स्वीकार करे। परन्तु, यदि कोई जीव देशविरति धर्म को भी स्वीकार करने की सामर्थ्य वाला न हो तो उस जीव को साधु क्या बताए? ऐसे जीव को साधु सम्यक्त्व के आचार आदि बताए। ऐसे जीव भी होते हैं, जिनकी योग्यता इतनी भी विकसित नहीं होती है, उन्हें साधु मार्गानुसारिता के गुण बताए। मार्गानुसारिता के आचार भी ऐसे हैं कि जिनका पालन करते-करते जीव धर्म प्राप्ति के योग्य बनता है और सर्वविरति तक पहुंच सकता है। -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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