शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

बदले की भावना से की गई कार्यवाही है


बदले की भावना से की गई कार्यवाही है

या असली अपराधी को बचाने की कवायद?

मित्रों ! मुझे कल मध्यरात्रि को जस्मीनभाई शाह की ओर से "सन्मार्ग" का 16.08.2009 का अंक वाट्सेप पर भिजवाया गया है, किन्तु यह अंक मैं देखचुका हूं और इस अंक का कोई अर्थ अब नहीं रह जाता, जब इसका खण्डन "सन्मार्ग" प्रकाशित कर चुका है और मामले की जांच के दौरान इसके तत्कालीन सम्पादक मुम्बई पुलिस को इस संबंध में अपना स्पष्टीकरण भी लिखकर दे चुके हैं।

सवाल यहां यह है कि तथाकथित गजट के जाली पाए जाने के बाद भी क्या किसी ने उसका पोषण करने का प्रयास किया है? क्योंकि इससे पहले तो जब कुशल मेहता गजट लेकर आया तो तथाकथित समारोह से पूर्व मुम्बई के बहुत सारे अखबारों ने भी इस गजट के संबंध में कुशल मेहता के हवाले से खबरें छापी थी और उसने अपना प्रभाव जमाने के लिए पूरा माहौल बनाया था। लेकिन जस्मीन भाई ने उन अखबारों को और कुशल मेहता को कठघरे में खडा क्यों नहीं किया? केवल सन्मार्ग और उससे जुडे व्यक्तियों व आचार्यश्री को ही क्यों इन्होंने निशाना बनाया?

इससे यह प्रकट होता है कि जस्मीन भाई की भावनाएं साफ नहीं है, किसी पूर्वाग्रह और ईर्ष्या या द्वेष से ग्रस्त है।

दूसरा अहम सवाल यह है कि यदि वे जैनी हैं, जैसा कि वे कह रहे हैं, चाहे वे किसी भी समुदाय को मानते हैं, यदि उनमें प्रभु महावीर के शासन के प्रति जरा भी भक्ति अथवा समर्पण का भाव होता और व्यक्तिगत अथवा सामुदायिक विद्वेष की भावना नहीं होती तो उन्हें जैसे ही यह लगा कि यह गजट फर्जी है और साधु भगवन इसके जांसे में आकर गलती कर रहे हैं तो तुरंत उन्हें आचार्यश्री व संबंधित लोगों को इसकी जानकारी देकर उनके साथ हो रहे धोखे से उन्हें बचाना चाहिए था। तब वे शासन के सही मायने में रक्षक होते। उनके कहने के उपरांत वे नहीं मानते तब उन्हें आगे की कार्यवाही करनी थी, लेकिन ये तो मानो इस प्रतीक्षा में थे कि कब ये गलती करें, जांसे में आएं और इन्हें फंसाया जाए! तो इनकी इस नीयत को कुशल मेहता की नीयत से जोडकर क्यों नहीं देखा जा सकता?

हालत यह है कि जस्मीनभाई ने अहमदाबाद के मेट्रोपोलियन मजिस्ट्रेट के समक्ष 2011 में और उसके बाद 28 फरवरी, 2014 को गुजरात उच्च न्यायालय में दिए गए हलफनामे में भी कुशल मेहता का नाम क्यों छिपाया? क्या इससे यह सवाल खडा नहीं होता कि ये असली अपराधी को बचाना चाहते हैं?

बहरहाल गजट के मामले में मुंबई में हो या अहमदाबाद में, न्यायालय में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा, मेरा अभी उससे कंसर्न नहीं है। मेरा मुख्य कंसर्न बालदीक्षा के खिलाफ इन्होंने जो मंतव्य रखा है उससे है, उससे मुझे गहरा आघात लगा है और उसी से धर्म की हीलना हुई है। और इसी पर मेरा विरोध है।

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