बुधवार, 15 जुलाई 2015

विघ्न-संतोषियों से सावधान !


जैन समाज के सभी साधु-साध्वी विघ्न-संतोषियों से सावधान !

धर्म के लिए सर्व प्रसिद्ध गुजरात राज्य में यह कैसी विडम्बना है ?

धर्म नगरी सूरत और अहमदाबाद में हाल ही में भव्य दीक्षा समारोह हुए हैं, जिसमें बडी संख्या में साधु-साध्वी भगवंतों का पदार्पण हुआ है और लाखों की संख्या में जनसैलाब उमडा है, वहां धर्म की इतनी हीलना और ऐसा हमला होने के बावजूद खामोशी? यह हमला भी अपने आपको आचार्य और साधु कहलाने वाले कतिपय वेशधारियों के इशारे पर और धर्महीन व्यक्ति के माध्यम से !

धिक्कार है उन तथाकधित जैन साधुओं को जो अपने ही धर्म को मिटाने के लिए और इर्ष्या की आग में अंधे होकर एक प्रवचन प्रभावक, अतिशय लब्धियों के धारक, सरल-सहज आचार्य को नीचा दिखाने के लिए एक ऐसे व्यक्ति का सहारा ले रहे हैं, जिसका अचार-विचार या जिसका स्वयं का चरित्र खोखला है.

हम किसी के व्यक्तिगत जीवन में नहीं जाना चाहते, किन्तु यदि कोई चरित्रहीन व्यक्ति पूरे समाज के लिए और धर्म के लिए नासूर बन जाए तो उसके व्यक्तिगत जीवन को भी जानना जरूरी हो जाता है। इस व्यक्ति के संबंध में जो जानकारी मिली है, वह अत्यंत शर्मनाक और चौंकानेवाली है। एक मुस्लिम युवती को अपने प्रेम जाल में फंसाकर इन्होंने उसे गर्भवती बना दिया। मुस्लिम समाज को पता लगने पर इनके खिलाफ आक्रोश बढा तो इन्हें उसके साथ निकाह कबूल करना पडा। ऐसे दुष्चरित्र वाला व्यक्ति समाज में किस मुंह से सिर उठाकर दीक्षाधर्म पर उलजलूल टिप्पणियां कर रहा है और कानून का मजाक उडा रहा है?

क्या यही एक व्यक्ति रह गया था अपनी बदले की आग शान्त करने के लिए या प्रवचन प्रभावक आचार्यश्री कीर्तियशसूरीश्वरजी की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए?

क्या ये साधु द्वेष में इतने अंधे हो गए हैं कि इन्हें यही नहीं दिखाई दे रहा कि दीक्षाधर्म पर हमला पूरे जैनधर्म पर हमला है?

ईर्ष्या की आग में जलते हुए ये साधु एक ठिकाना छोडकर दूसरे ठिकाने पर आए हैं और क्या अब इसे भी ये मिटाना चाहते हैं? जैन समाज के सभी दीक्षाधर्म-जैनधर्म के प्रति संजिदा, संवेदनशील साधु-साध्वियों को आपसी मतभेदों को भुलाकर इस समय एकजुट होकर इस पर सोचने और प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।

रोहित शाह द्वारा मिड डे में लिखे गए धर्म विरोधी एक लेख पर महाराष्ट्र और अहमदाबाद के जैन समाज में थोडी सी हलचल दिखाई दी, जिससे लगा था कि समाज में थोडी-बहुत जीवंतता तो है, लेकिन उससे अधिक गंभीर और उससे कई गुना बडे मामले में सभी आचार्यों, गुरु भगवंतों, साध्वी भगवंतों, अग्रणीय श्रावक-श्राविकाओं और तथाकथित धर्म के झण्डाबरदारों की मौन साधना हमारी समझ से बाहर है, क्योंकि आपस में विचार भेद हो सकते हैं, मन भेद भी हो सकते हैं, किन्तु इस मामले में इन सबसे ऊपर उठकर सोचने की जरूरत है और इसके लिए किसी के आग्रह या अनुनय का इंतजार किए बिना स्वयं स्फूर्त खडे होने की जरूरत है, क्योंकि शासन सबका है और शासन पर आँच आएगी तो कभी न कभी सभी जुलसेंगे। मिच्छामिदुक्कडम्!

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