शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

सम्यग्दृष्टि की मनोदशा


मोक्ष सर्वोत्तम कोटि का साध्य है, धर्म उसका कारण है और मुझे धर्म के सेवन द्वारा मोक्ष को प्राप्त करना है’, इस प्रकार की मनोदशा को सम्यग्दर्शन गुण का बीज कहा जा सकता है और यह भी कहा जा सकता है कि सम्यग्दर्शन गुण के प्रकटीकरण की तैयारी चल रही है। ऐसी मनोदशा अभव्यात्माओं में तथा दुर्भव्यात्माओं में प्रकट नहीं हो सकती। चरमावर्त को प्राप्त आत्माओं में भी जो मंद मिथ्यात्व वाले होते हैं, वे मिथ्यादृष्टि होते हुए भी ऐसी मनोदशा के स्वामी अवश्य बन सकते हैं। इस विषय में भी सम्यग्दृष्टि आत्माओं की मनोदशा और मिथ्यादृष्टि जीवों की मनोदशा में बहुत बडा अंतर होता है। चरमावर्त को प्राप्त मंद मिथ्यात्व वाली आत्माओं को मोक्ष की रुचि होने पर भी मोक्ष का जो एक मात्र सच्चा मार्ग है, उसकी रुचि नहीं होती है; धर्म के प्रति अभिरुचि होने पर भी श्री जिनेश्वर देवों द्वारा प्ररूपित धर्म ही वास्तिक धर्म है; इसके अतिरिक्त दुनिया में जितने धर्म कहे जाते हैं, वे सही रूप में धर्म नहीं, अपितु कुधर्म हैं, ऐसी मान्यता उन मिथ्यादृष्टि आत्माओं की नहीं होती।

सम्यग्दर्शन गुण को प्राप्त पुण्यात्माओं की मान्यता तो ऐसी होती है कि इस संसार में, इस जीव द्वारा साधने योग्य एक मात्र मोक्ष ही है। देवलोक के या मनुष्य लोक के श्रेष्ठ से श्रेष्ठ सुख भी वस्तुतः साधने योग्य नहीं हैं। भगवान श्री जिनेश्वर देवों ने मोक्ष की साधना का जो उपाय बताया है, वही एक मात्र मोक्ष का उपाय है। इसके अतिरिक्त अन्य कोई भी मोक्ष का उपाय नहीं है।

सम्यग्दर्शन गुण को प्राप्त पुण्यात्मा जीव हर किसी को देव मानने वाले नहीं होते, अपितु अठारह दोषों से रहित और अनंत गुणों के स्वामी भगवान श्री जिनेश्वर देव तथा श्री सिद्धिपद को प्राप्त परमात्माओं को ही सुदेव के रूप में मानने वाले और पूजने वाले होते हैं। वे अन्य सर्व देवों को कुदेव मानते हैं। सम्यग्दर्शन-गुण को प्राप्त पुण्यात्माओं ने ऐसे कुदेवों का त्याग किया होता है। इसी तरह गुरु तत्त्व के विषय में भी सम्यग्दर्शन गुण को प्राप्त पुण्यात्मा सुविवेकी होते हैं। जो भगवान श्री जिनेश्वर देवों की आज्ञानुसारिणी निर्ग्रंथता को धारण करने वाले नहीं होते और इसलिए रत्नत्रयी के स्वामी नहीं होते, ऐसे व्यक्ति दुनिया में गुरु के रूप में माने जाते हों या पूजे जाते हों, तो भी सम्यग्दर्शन गुण को प्राप्त पुण्यात्मा जीव उन्हें सुगुरु के रूप में नहीं मानते। उन्हें कुगुरु मानकर उनका त्याग करने वाले होते हैं। भगवान श्री जिनेश्वर देवों के द्वारा कहा हुआ मोक्षमार्ग ही मोक्ष का सच्चा उपाय है। यही एक सच्चा धर्म है। इसके सिवाय दुनिया में जो कोई धर्म कहे जाते हैं, वे वस्तुतः धर्म नहीं हैं, अपितु कुधर्म हैं, ऐसी मान्यता पूर्वक सम्यग्दर्शन गुण को प्राप्त पुण्यात्मा जीव कुधर्मों का त्याग करने वाले होते हैं।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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